सफ़ेद शर्ट पहने अम्बेडकर विश्वविद्यालय के छात्र–छात्राओं की टोली शहीद स्मारक की सीढ़ियों पर चढती है.गोमती नदी की धारा दिखाई देते ही छात्रों की यह टोली ज़ोर से नारे लगाती है.
‘गोमती मैया की जय , गोमती मैया की जय.’
इन युवक युवतियों के साथ गोमती मैया की जय का नारा लगाने वालों में कई वैज्ञानिक, अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, अध्यापक , इंजीनियर, डाक्टर और रिटायर्ड सैनिक अधिकारी भी शामिल हैं.
‘गोमती मैया स्वच्छ हों’
ये सभी लोग गोमती की सफ़ाई और पुनर्जीवन का संकल्प लेने के लिए शहीद स्मारक मंच के पास जमा होते हैं. अकेले दम पर एक लाख पेड़ लगाने का अभियान चलाने वाले कवि चंद्र भूषण तिवारी पर्यावरण की रक्षा के लिए एक प्रेरणा गीत गाकर इन युवक–युवतियों में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं.
इसके बाद एक संकल्प दोहराया जाता है , ‘ गोमती मैया स्वच्छ हों, सबका शुभ संकल्प हो.’’
और यह संकल्प लेने का बाद सभी लोग गोमती की धारा के पास पहुँचते हैं. जिसको जो औज़ार मिलता है उसे लेकर वह गोमती की सांकेतिक सफ़ाई में जुट जाता है. जिसको औज़ार नही मिला वह हाथों से ही किनारे पर बिखरी पौलिथिन की थैलियों को उठाकर एक जगह जमा करने लगता है.
बीमार गोमती असहाय भाव से यह सब देखती है. पीलीभीत से शाहजहांपुर, खीरी और सीतापुर होते हुए गोमती लखनऊ की सीमा में आक्सीजन से भरपूर और लगभग साफ़ सुथरी प्रवेश करती है.
लेकिन लखनऊ शहर, गऊ घाट वाटर वर्क्स में गोमती से पीने का पानी निकालने के बाद, अपना मल-मूत्र और कचरा गोमती में डाल देता है. साथ ही साथ निचली धारा में बैराज बनाकर नदी का प्रवाह रोक दिया गया है, जिससे नदी ठहरकर एक गंदी झील जैसी दिखाई देती है.
वैज्ञानिकों की एक टीम इसी गन्दी झील जैसी गोमती से पानी के नमूने प्रयोगशाला में जांच के लिए ले जाती है.
यह सब देखकर गोमती मन ही मन क्या सोच रही होगी , मुझे नही मालूम. लेकिन मुझे मालूम है कि पिछले लगभग 50 सालों से वैज्ञानिक , इंजीनियर और पत्रकार गोमती का अध्ययन कर नदी में खतरनाक प्रदूषण की जानकारी दे रहे हैं. सामाजिक – राजनीतिक कार्यकर्त्ता जनचेतना जागृत करने का कम कर रहे हैं.
हाल ही में एशिया का सबसे बड़ा ट्रीटमेंट प्लांट भी लखनऊ में लग चुका है. लेकिन शहर के मध्य गोमती वैसी ही बीमार और असहाय पड़ी है , जैसे कोई मरीज़ सालों से कोमा में पड़ा हो.
मगर इन छात्र–छात्राओं , वैज्ञानिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का हौसला देखने लायक़ है जो गोमती का कष्ट निवारण करने के लिए उसके उद्गम पीलीभीत से गाज़ीपुर तक यात्रा पर जा रहे हैं , जहां वह गंगा में मिलकर अपना अलग अस्तित्व खो देती है.
Published here – https://www.bbc.com/hindi/india/2011/03/110331_gomti_cleaning_ia
Ram Dutt Tripathi Journalist & Legal Consultant