सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की लखनऊ में हुई बैठक में तय हो गया है कि अयोध्या मामले पर हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी.
बोर्ड के अध्यक्ष ज़फर अहमद फ़ारुकी को इस मामले में कोई भी फ़ैसला लेने के लिए अधिकृत किया गया है.
दूसरी ओर कई वरिष्ठ मुस्लिम नेता इस बात की कोशिश में लगे है कि हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद अयोध्या मसले को बातचीत से सुलझा लिया जाए.
कोर्ट में इस मामले को देख रहे वकील ज़फ़रयाब जिलानी पहले ही कह चुके थे कि हाईकोर्ट के फै़सले के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना तय है.
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा कि वो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से बंधे नहीं हैं और वो हर हाल में सुप्रीम कोर्ट जाएँगे.
ज़फ़रयाब जिलानी का कहना था कि मुख्य रूप से उनकी अपील के तीन आधार हैं. एक तो हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में श्रद्धा और विश्वास को तरजीह दी है जो सबूत की श्रेणी में नहीं आता. सबसे बड़ा सवाल यही है.
दूसरा ये कहा गया है कि ये स्थल हिंदू और मुसलमानों का साझा कब्ज़े वाला था जबकि बाबरी मस्जिद पर मुसलमानों का कब्ज़ा था जबकि निर्मोही अखाड़े का बाहरी हिस्से पर कब्ज़ा था.
तीसरी बात ये कि वहाँ जुमे को ही नमाज पढ़ी जाती थी जबकि वहाँ पांचों वक्त नमाज होती थी.
सुलह की पहल
हाईकोर्ट के लखनऊ पीठ ने हाल ही में अपने एक फ़ैसले में कहा कि चूँकि विवादित जमीन नजूल की यानि सरकारी है और उस पर लंबे अरसे से दोनों समुदायों का कब्ज़ा रहा है इसलिए उसका दो तिहाई हिस्सा हिंदुओं और एक तिहाई मुसलमानों को दिया जाए.
अदालत ने विवादित मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे अस्थाई राम मंदिर को अपनी जगह और सीता रसोई राम चबूतरे कि जगह निर्मोही अखाड़ा को देते हुए जमीन के बंटवारे के संबंध में सभी पक्षों से तीन महीने में सुझाव मांगे हैं.
अदालत के इस फैसले तो लेकर बहुतेरे लोगों का कहना है कि अब इस विवाद को और लंबी क़ानूनी लड़ाई में ले जाने के बजाए सुलह समझौता कर लिया जाए.
इसी सिलसिले में फोरम फॉर पीस एंड यूनिटी नाम की एक संस्था ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके सरकार से अपील की है कि वो सभी पक्षों को इकट्ठा करके बातचीत शुरू कराए.
इसमें संस्था के अध्यक्ष मौलाना ज़हीर अहमद सिद्दीकी, रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक एसएम नसीम, सैयद खालिद नक़वी और वरिष्ठ पत्रकार हिसाम सिद्दीकी मौजूद थे.
अध्यक्ष मौलाना ज़हूर अहमद ने कहा,”सरकार को चाहिए कि सभी पक्षकारों को इकट्ठा करके इस मामले को हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म कराए. हमारा विश्वास है कि इस समय यदि सरकार और समस्त पक्षकार पूरी ईमानदारी से आपस में बैठकर अदालत के फ़ैसले को पालन करने में सहयोग करें तो शायद किसी पक्षकार को सुप्रीम कोर्ट जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी.”
सलाह-मशविरा
दूसरी ओर धार्मिक मामलों में मुसलमानों की सबसे प्रमुख संस्था मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक बैठक 16 अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली है.
बोर्ड के कई सदस्य भी आपस में मशविरा कर रहे हैं कि हाईकोर्ट के फैसले से पूरी तरह संतुष्ट न होने के बावजूद देश में शांति और सुलह का जो मौक़ा माहौल बना है, उसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील न की जाए.
बोर्ड के एक सदस्य मौलाना खालिद रशीद का कहना है,”हम समझते हैं कि यह फ़ैसला क़ानून के शासन या संविधान की बुनियाद पर नहीं हुआ है, बल्कि बहुसंख्यक समुदाय की आस्था की बुनियाद पर यह फ़ैसला हुआ है. लेकिन यह जो मौक़ा मिला है इस मसले को हमेशा हमेशा के लिए हल करने का, उसको हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.”
मौलाना खालिद रशीद अनुसार 70 फ़ीसदी मुसलमान समझौते के पक्ष में हैं.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और शिया नेता मौलाना कल्बे सादिक पहले से ही आपसी समझौते के हक़ में हैं. लेकिन कई अन्य पदाधिकारी सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात भी कह रहे हैं.
मामले के एक मुख्य पक्षकार मुस्लिम सुन्नी सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड ने अभी इस मसले पर बैठक भी नहीं बुलाई है.
इस बीच अयोध्या के मुसलमानों की ओर से एक प्रमुख पक्षकार मोहम्मद हाशिम अंसारी ने कहा है कि अब अयोध्या मसले पर हिंदू मुसलमानों को आगे लड़ाई नही करनी चाहिए.
हाशिम अंसारी ने हनुमान गढ़ी के महंत और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ज्ञान दास से मिलकर पहल करने को कहा है.
ज्ञान दास ने हाशिम अंसारी को इसमें मदद करने के लिए भी कहा है. लेकिन निर्मोही अखाड़ा के एक अन्य संत राम दास हाशिम अंसारी और ज्ञान दास की बातचीत को महत्व नहीं देते. ज्ञान दास और निर्मोही अखाड़े के संबंध अच्छे नहीं हैं.
राम मंदिर निर्माण आंदोलन की अग्रणी संस्था विश्व हिंदू परिषद ने अभी अपना रुख़ स्पष्ट नही किया है, जबकि हिंदू महा सभा ने सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा कर दी है.
प्रेक्षकों का कहना है कि इस समय पूरे देश में जो सदभावना का माहौल बना है, उसका कुछ न कुछ असर मुक़दमा लड़ने वाले सभी पक्षों पर पड़ेगा.
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