किसान नेता राकेश टिकैत के आह्वान पर किसान अपने गाँवों से एक बार फिर दिल्ली सीमा की ओर कूच कर रहे हैं . पुलिसिया हथकंडों से किसान आंदोलन को कुचलने की चेष्टा उलटी पड़ी . गुरुवार रात गाजीपुर बॉर्डर पर हाईवोल्टेज ड्रामा नजर आया और आंदोलन स्थल पर तस्वीर पल-पल बदलती रही. योगी सरकार के किसानों के आंदोलन को खत्म करने के आदेश के बाद दिल्ली और उत्तरप्रदेश की सीमा गाजीपुर बार्डर पिछले 24 घंटों से पूरे देश में लगातार सुर्खियों में है।
गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले 65 दिन से आंदोलन कर रहे किसान नेता राकेश टिकैत को हटाने के लिए गुरुवार दिन से ही हजारों की संख्या में यूपी पुलिस, पीएसी और पैरामिलट्री फोर्स के जवान गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंच गए थे। गाजीपुर बॉर्डर पर इतनी बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स के पहुंचने के बाद ऐसा लगा था कि पुलिस आंदोलन कर रहे किसानों का यहां से उठा देगी।
पुलिस के अफसरों और किसान नेता राकेश टिकैत की बीच कई दौर की बातचीत भी हुई लेकिन बात नहीं बन पाई। इस बीच जब पुलिस ने सख्ती दिखानी शुरु की तो राकेश टिकैत मीडिया से बात करते हुए भावुक हो गए और उनके आंखों से आंसू निकल पड़े। राकेश टिकैत के आंसुओं ने 26 जनवरी के बाद ठंडे पड़ रही किसान आंदोलन की आग को फिर जलाने में अंगारे जैसा काम किया।
किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू…
किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू निकलते ही किसान आंदोलन का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट आ गया और कुछ ही घंटों में तस्वीर देखते ही देखते बदल गई। राकेश टिकैत के आंसू निकलते ही उनके समर्थक गाजीपुर बॉर्डर से मुजफ्फरनगर तक सड़कों पर उतर आए इस बीच राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत ने आज खाप पंचायत बुलाने का एलान कर दिया है। बलियान खाप पश्चिम यूपी में जाटों की सबसे बड़ी खाप पंचायत है और राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत के इसके अध्यक्ष है।
गुरुवार रात तक जो यूपी पुलिस किसान आंदोलन को खत्म करने पर आमादा दिखाई दे रही थी वह शुक्रवार की सुबह की पहली किरण फूटने से पहले गाजीपुर बॉर्डर से पहले बैरंग लौट आई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि यूपी पुलिस के हजारों जवान बिना आंदोलन को खत्म कराए वापस लौट आए।
आंदोलन में जाट और खाप पॉलिटिक्स की एंट्री-असल में नए कृषि कानून के विरोध में शुरु हुआ किसान आंदोलन अब सीधे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट पॉलिटिक्स से जुड़ गया। उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव और आने वाले समय में होने वाले पंचायत चुनाव से अब किसान आंदोलन जुड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के आंसूओं ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों और जाटों की सियासत करने वाले दो विरोधी खेमों को अचानक से एक मंच पर ला दिया। राष्ट्रीय लोकदल के नेता चौधरी अजित सिंह ने राकेश टिकैत से फोन पर बात कर उनको समर्थन देने का एलान कर दिया तो अजित सिंह के बेटे ने उनके समर्थन में ट्वीट कर दिया जिसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे है।
किसान आंदोलन को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि राकेश टिकैत जिस भारतीय किसान यूनियन के नेता है वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों का एक ऐसा संगठन है जिसके नेता महेंद्र सिंह टिकैत की एक आवाज पर किसान लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता हिलाने की ताकत रखते थे।
राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत को मनाने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को उनके गांव तक जाना पड़ा था। महेंद्र सिंह टिकैत ने एक नहीं कई बार केंद्र और राज्य सरकार को अपनी मांगों के आगे झुका दिय़ा था।
महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष और राकेश टिकैत राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। इसके साथ ही जाटों की सबसे बड़ी बालियान खाप पंचायत की पगड़ी भी नरेश टिकैत को सिर बांधी गई। आज इसी खाप महापंचायत की बैठक होने जा रही है।
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि राकेश टिकैत के आंसुओं ने एक तरह से उनके समर्थकों को भड़का दिया और लोग एक तरह से विद्रोह करते हुए सड़कों पर उतर आए। टिकैत के गांव सिसौली में हजारों की संख्या में लोग पहुंच गए और वह अचानक से गाजीपुर बॉर्डर की ओर कूच करने लगे। जिसके बाद पूरा माहौल बदल गया और सरकार और प्रशासन को बैकफुट पर आना पड़ा। वह महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि इस तरह के आंदोलन को डंडे के बल पर दबाया नहीं जा सकता और यह बात सरकार को भी समझनी चाहिए।
सरकार के सामने कृषि कानून रद्द करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं(Opens in a new browser tab)
रामदत्त आगे कहते हैं कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट वोट बैंक भाजपा का पंरपरागत वैट बैंक के रुप में उभरा है और पिछले कुछ चुनाव से लगातार भाजपा के साथ नजर भी आ रहा है। राकेश टिकैत के आंसुओं ने जाट कम्युनिटी आहत कर दिया। इसका नुक़सान भाजपा को अवश्य होगा .
किसानों को आशंका है कि नये कृषि व्यापार क़ानूनों से न केवल न्यूनतम मूल्य समर्थन योजना धीरे – धीरे समाप्त हो जायेगी वरन भंडारण सीमा हटने से मुनाफ़ाख़ोरी बढ़ेगी और खाद्य सुरक्षा ख़तरे में पड़ेगी . ठेका खेती से किसानों अपनी ज़मीनें जाने का भी ख़तरा है.
ग्रामीण अर्थ व्यवस्था पहले से चौपट है और अब इन नये क़ानूनों ने किसानों को झकझोर दिया है .
Ram Dutt Tripathi Former Correspondent , BBC 55 Gulistan Colony , Lucknow 226001 India
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