जेपी आन्दोलन

आपातकाल ने सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन को पटरी से उतार दिया 

राम दत्त त्रिपाठी लोक नायक जय प्रकाश नारायण एक ऐसे बिरले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने को क्रांति की किसी किताब या विचारधारा में बाँधकर नहीं रखा।वह पूरे जीवन सत्ता से दूर रहकर क्रांति की खोजऔर असली लोकराज  की स्थापना  के लिए सतत लगे रहे। इसीलए वह साम्यवाद से गांधीवाद और ...

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सर्वोदय – जेपी आंदोलन में मेरे प्रेरणास्रोत: प्रो. बनवारीलाल शर्मा

अब से क़रीब चौवालीस साल पुरानी बात है सन उन्नीसवाँ सौ तिहत्तर की . इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में सेकेंड फ़्लोर पर क्लास ख़त्म करके बाहर निकला तो सहपाठी भारतभूषण शुक्ल ने कंधे पर हाथ रखा. भारत भूषण ने मुझे सर्वोदय स्टडी सर्किल के बारे में बताया और आग्रह किया कि मैं अगली गोष्ठी में ज़रूर आऊँ. हॉलैंड हाल छात्रावास में हुई इस गोष्ठी में विश्वविद्यालय के कई प्रोफ़ेसर शामिल थे. लेकिन उनमें एक प्रोफ़ेसर अलग थे. सफ़ेद खादी का कुर्ता और धोती , घुंघराले बालों  वाले इन प्रोफ़ेसर के चेहरे पर मुस्कराहट और ओज आकर्षक और प्रभावित करनेवाला था. ये थे गणित विभाग के प्रोफ़ेसर डा बनवारी लाल शर्मा. गोष्ठी में समसामयिक आर्थिक परिदृश्य  पर गांधीवादी दृष्टिकोण रखा गया, जिससे मैं काफ़ी प्रभावित हुआ . विश्वविद्यालय में छात्रों के बीच समाजवादी युवजन  सभा , विद्यार्थी परिषद , राष्ट्रीय छात्र संगठन और स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन आदि की इकाइयॉं सक्रिय थीं. मैं समाजवादी युवजन सभा से नया -नयाजुड़ा था. सर्वोदय स्टडी सर्किल को कई गोष्ठियों में शामिल होने के बाद मुझे लगा कि छात्र संगठन समाज निर्माण या व्यवस्था परिवर्तन के बजाय केवल चुनावी राजनीति तक सीमित हैं. डा. शर्मा के व्यक्तित्व और गांधी की सर्वोदय विचार धारा से प्रभावित होकर मैं सर्वोदय विचार प्रचार समिति के कार्यक्रमों में शामिल होने लगा. महादेवी वर्मा इस समिति की अध्यक्ष थीं . समिति की एक बैठक उनके घर हुई तो उनसे मिलने का अवसर मिला. समिति के कामकाज में कॉमिक्स विभाग के प्रोफ़ेसर जे एस माथुर , हिन्दी केडा. रघुवंश, मनोविज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर आर सी त्रिपाठी  और प्राचीन इतिहास के प्रोफ़ेसर उदय प्रकाश अरोड़ा के अलावा, जमुना क्रिश्चियन कॉलेज में गणित के अध्यापक राम कृष्ण गुप्त , एग्राकल्चर इंस्टीट्यूट नैनी के भरत जी विशेष सक्रिय थे. इनके अलावा गांधी जी के वर्धा आश्रम में रह चुके भाई जी थे , जो रेलवे स्टेशन पर सर्वोदय साहित्य स्टॉल चलाते थे. लेकिन समिति का मुख्य केन्द्र था 21 बी मोती लाल नेहरू रोड . डा. बी एवं शर्मा यहॉं किराये पर रहते थे. यह घर विश्वविद्यालय से बहुत क़रीब था . यहॉं से नगर स्वराज्य नाम का एक पाक्षिक पत्रप्रकाशित होता था और सर्वोदय सचल पुस्तकालय भी संचालित होता था. धीरे – धीरे सम्पर्क बढ़ता गया और मैं समिति के कामकाज से जुड़कर इस घर का सदस्य जैसा हो गया. डा. शर्मा की पत्नी सुमन शर्मा स्वयं गणितज्ञ थीं और समिति के कामकाज में हाथ बँटातीथीं. डा. शर्मा घर के जिस हिस्से में रहते थे उसमें ऊपर एक कमरा , किचेन  और बाथरूम के अलावा एस्बेटस शीट्स का एक शेड था . नीचे का कमरा स्टडी , ऑफ़िस और ड्राइंग रूम तीनों काकाम करता था. लेकिन बरामदा , ऊपर की छत और आगे लॉन होने से जगह कम नहीं पड़ती थी और समिति की बैठकें या कार्यकर्ताओं का जमावड़ा यहीं होता था. डा. शर्मा की जीवनशैली बड़ी सरल और प्रभावित करने वाली थी. नहाने के लिए वह बाल्टी लेकर नीचे आँगन में आते थे और अपना कपड़ा रोज़ स्वयं धुलते थे. समय के बहुत पाबंद . रोज़ के काम डायरी में लिखना , जो हो जायें उन्हें काटकर बाक़ी अगले दिन के कार्यक्रम में लिख लेते थे. तमाम सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता के बावजूद वह क्लास नियमित लेते थे. इसलिए कई बार दिन में मिलने के लिए हम गणित विभाग पहुँच जाते थे. उनका कमरा ऊपर था . मैं तेज़ी से सीढ़ी चढ़ता था और मेरी चाल से वह समझ जाते थे कि मैं आ रहा हूँ. मज़ाक़ में वहकई बार कहते थे , थिंक ऑफ़ द डेविल ऐंड डेविल इज  देयर. डा. शर्मा राष्ट्रीय सेवा योजना एन एस एस के कोऑर्डिन्टर भी थे . मैं गणित या विज्ञान का छात्र नहीं था. पर मैं एन एस एस का कला संकाय का ग्रुप छोड़कर उनके ग्रुप में शामिल हो गया ताकिउनके कैम्पों में जाने का अवसर मिले. वहॉं डा. शर्मा सुबह योगासन ज़रूर करवाते थे . इसके अलावा सफ़ाई और प्रौढ़ शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा के साथ सर्वोदय विचारधारा और रचनात्मक कार्यक्रमों के बारे में बताते थे. कैम्पों में रात में होनेवाली परिचर्चाओं के विषय बड़े दिलचस्प होते थे. जैसे एक बार उन्होंने विषय रखा आग कैसे लगायी जाये . सारे छात्र सकपका  गये . तब उन्होंने ख़ुलासा किया कि क्रांति या व्यवस्था परिवर्तन कीशुरुआत कैसे की जाये. डा. शर्मा कैम्पस में अनुशासन बनाये रखने के लिए भी सक्रिय थे और जहॉं तक मुझे स्मरण है , इसके लिए उन्होंने उपवास किया . उन्हीं से प्रेरित होकर हम तरुण शांति सेना के लोगों ने कई रोज़विश्वविद्यालय गेट पर क्रमिक अनशन किया , जिसको छात्र – छात्राओं का व्यापक समर्थन मिला . इसके बाद डा. शर्मा ने हमें तत्कालीन कुलपति राम सहाय से मिलवाया. डा. शर्मा  का शिक्षक समुदाय में भी काफ़ी सम्मान था. उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर विश्वविद्यालय के अनेक छात्र तरुण शांति सेना के सदस्य बन गये. इनमें कृष्ण स्वरूप आनंदी , प्रेम चंद्र गुप्त , धनपत पांडेय , हिमाद्रि मुखर्जी , भारत भूषणशुक्ल , राकेश मोहन और सुरेश त्रिवेदी के नाम याद है. अन्य जो छात्र हमारे ग्रुप से जुड़े उनमें राम धीरज , राम अभिलाष और सुरेश रावत प्रमुख हैं. कुछ ही महीनों बाद 1973 के अंत होते – होते जेपी ने युवाओं के नाम अपील जारी की यूथ फ़ॉर डेमोक्रेसी . जे पी समाज और व्यवस्था के हालात से बेचैन थे . उन्हें 1942 जैसे हालात नज़र आ रहेथे. जे पी डा. शर्मा को बहुत मानते थे. जे पी की अपील पर डा. शर्मा ने इलाहाबाद में भी युवा मंच का गठन कराया. 1974 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मतदाता शिक्षण एवं चुनाव शुद्धि अभियान चलाया गया. चुनाव ख़र्च कम करने के लिए एक अनोखा प्रयोग करते हुए नागरिक सभाएँ आयोजित हुईं ,जिनमें सभी उम्मीदवारों को एक मंच पर बुलाया गया. कुछ ही दिनों बाद गुजरात और फिर बिहार में छात्र आंदोलन शुरू हो गये, जिसमें जेपी अगुआ बने. डा. शर्मा ने जेपी से सम्पर्क करके 22-23 जून 1974 को इलाहाबाद में अखिल भारतीय छात्र युवा सम्मेलन करवाया . लेकिन इस सम्मेलन के आयोजन में तत्कालीन बहुंगुणा सरकार ने अनेकबाधाएँ खडी़ की. कोई सभागार तक नहीं मिल रहा था . हम लोगों को गिरफ़्तारी की भी आशंका थी. लेकिन डा. शर्मा ने महादेवी जी से बात करके प्रयाग महिला विद्यापीठ में सम्मेलन करवायाऔर वहीं क्लास रूम्स में गद्दे डलवाकर प्रतिनिधियों के रहने का इंतज़ाम करवाया. जे पी को पास में पी जी टंडन के घर पर ठहराया गया. सम्मेलन के दूसरे दिन पी डी टंडन पार्क में जनसभा के समय पानी बरसने लगा. हम लोगों ने जे पी को छाता देना चाहा , पर जेपी ने मना करते हुए पब्लिक से कहा आप भीग रहे हैं तो मैं भीभीगूँगा. उनकी बात का जादुई असर हुआ. लोग हिले नहीं . भीगते हुए   भाषण सुनते रहे . नेहरू के गृह नगर में इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ इस  हुंकार से जेपी आंदोलन को राष्ट्रीय पहचान मिली . जेपी के वापस पटना जाते समय डा. शर्मा के साथ हम लोग उन्हें विदा करने  रेलवे स्टेशन गये . जे पी ने कहा कि बीमार होने के कारण वह बिहार से बाहर ज़्यादा समय नहीं दे सकते , इसलिएहम लोग उत्तर प्रदेश में आंदोलन को फैलाने के लिए पूरा समय दें . वापस आकर मैंने और भारत भूषण ने डा़. शर्मा से बात करके जेपी की अपील के अनुसार पढ़ाई छोड़ने का निश्चय किया और दोनों लोग लॉ प्रथम वर्ष की परीक्षा छोड़ दी. इस निर्णय से मेरेपरिवार में तूफ़ान खड़ा हो गया , पर डा. शर्मा के नैतिक समर्थन से हम इस कठिन मानसिक परीक्षा में पास हो गये . डा. शर्मा सर्वोदय आंदोलन में सक्रिय होते हुए भी सर्वोदय और गॉंधीवादी संस्थाओं से अलग थे . इसीलिए उन्होंने सर्वोदय विचार प्रचार समिति के नाम से एक अलग संस्था बनायी थी , जिसकामुखपत्र था नगर स्वराज्य. डा. शर्मा इसके प्रकाशक थे और बलाश के नाम से नियमित कॉलम लिखते थे . डा. शर्मा ने मात्र 21 वर्ष की उम्र में मुझे प्रबंध संपादक की ज़िम्मेदारी दी . इसके बाद हमने इस पाक्षिक पत्रिका को जेपी आंदोलन का मुखपत्र बनाकर डाक से देश भर में भेजना शुरू किया . डां शर्मा मानते थे कि आज़ादी मिलने के बाद स्वराज्य आंदोलन की जो धारा 1947 में टूट गयी थी , वह 1974 में जेपी आंदोलन से फिर शुरू हुई है . नगर स्वराज्य के एक विशेषॉंक में उन्होंने इसीथीम पर कवर डिज़ाइन बनवायी थी. डा. शर्मा के संगठन कौशल का कमाल था कि उन्होंने हर वर्ग के लोगों को आंदोलन से जोड़ा. जेपी आंदोलन में विपक्षी दल शामिल थे , पर जेपी को लगता था कि ये लोग सम्पूर्ण क्रॉंति आंदोलन में दूर तक साथ नहीं देंगे. सर्वोदय जगत में भी जेपी आंदोलन को लेकर दुविधा थी. इसलिएजेपी ने अपने नायकत्व में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का गठन किया. हम लोगों ने इलाहाबाद में भी वाहिनी की इकाइयॉं बनायी और उसका केंद्र भी डा. शर्मा का आवास था आंदोलन के दरम्यान दो महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं . बारह जून उन्नीस सौ पचहत्तर को कॉंग्रेस गुजरात विधान सभा चुनाव हार गयी और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनावी भ्रष्टाचार में उनकी लोक सभासदस्यता रद्द कर दी . दो दिन बाद जे पी सर्वोदय नेताओं की बैठक के लिए पटना से जबलपुर जा रहे थे . जेपी ने डा. शर्मा को मिलने का संदेश भेजा . ट्रेन बदलने के लिए उनके पास कुछ घंटों का समय था. आगे क्या करना है इस पर विचार विमर्श के दौरान जे पी का स्पष्ट कहना था कि विपक्षी नेता इस मौक़े पर इंदिरा गॉंधी के खिलाफ बड़ेआंदोलन के लिए उन्हें दिल्ली बुला रहे हैं पर वह बिहार में में सम्पूर्ण क्रॉंति आंदोलन को निचले स्तर तक संगठित करना चाहते हैं , इसलिए दिल्ली नहीं जाना चाहते. लेकिन जेपी पर दबाव बढ़ा , परिस्थितियॉं बदलीं . 25 जून को जेपी ने रामलीला मैदान की ऐतिहासिक सभा में इंदिरा जी के त्यागपत्र को लेकर सत्याग्रह और पुलिस तथा सैनिकों से ग़ैर क़ानूनीआदेश न मानने का आदेश दिया. रातोंरात इमर्जेंसी लगी. अगली सुबह जो देशव्यापी गिरफ़्तारियाँ हुईं , उनमें डा. शर्मा को भी गिरफ़्तार कर लिया गया.जाने से पहले डा. शर्मा संदेश दे गये कि नगर स्वराज्य का प्रकाशन जारी रखो.मगर मालूम पड़ा कि पुलिस मुझे भी तलाश रही है . हमने कुछ दिन भूमिगत रहते हुए सत्याग्रह और प्रतिरोध खड़ा करने की कोशिश की . 15 अगस्त को कुछ जगह कार्यक्रम हुए भी. 14 सितंबर को मैं संतोष भारतीय और बिमल कुमार बनारस में गिरफ़्तार कर लिए गये . मैंने जेल से अपनी लॉ की पढ़ाई जारी रखने का निर्णय किया . इलाहाबाद विश्वविद्यालय के निर्देश पर मुझेबनारस से नैनी जेल ट्रांसफ़र कर दिया गया , जहॉं पुन: डा शर्मा का सान्निध्य मिला. मार्च 1977 में इमर्जेंसी हटी , लोकतंत्र  बहाल हुआ. मगर हम लोगों के सामने चिंता थी कि अब आगे क्या करें , विशेषकर छात्र और युवा वर्ग . हमें इस बात का एहसास था कि नई सरकार आनेके बाद तुरंत फिर से आंदोलनात्मक कार्यक्रम नहीं हो सकता. चुनावी और दलीय राजनीति में हम लोगों को जाना नहीं था. डा. शर्मा ने सबको आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर सर्वोदय का काम बढ़ाने की सलाह दी. मुझे अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी करनी थी. डा. शर्मा अपने हर साथी के लिए चिंतित रहते थे. नगरस्वराज्य का काम देखते हुए मेरी पत्रकारिता में रुचि अधिक थी. मैं पत्रकारिता को भी समाज सेवा का माध्यम मानता हूँ. मेरी रुचि देखते हुए डा. शर्मा मुझे इलाहाबाद से प्रकाशित भारत अख़बार के सम्पादक डा. मुकुंद देव शर्मा के पास ले गये . उन्होंने अगले दिन टेस्ट लेकर प्रशिक्षु उप संपादक के रूप में रखलिया और इस तरह मेरा प्रोफ़ेशनल पत्रकारिता का अध्याय शुरू हुआ. डा. शर्मा ने इस बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ख़िलाफ़ नई आज़ादी अभियान शुरू किया और स्वराज विद्यापीठ की स्थापना की. ...

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जय प्रकाश नारायण और उनकी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी

1974 में जय प्रकाश नारायण ने गुजरात और बिहार में छात्र युवा आंदोलन को नेतृत्व देना स्वीकार किया। बाद में अनेक ग़ैर कांग्रेस विपक्षी दल भी इस आंदोलन में शामिल हुए, जिनको मिलाकर जैन संघर्ष समितियाँ बनीं। लेकिन जे पी ने महसूस किया की विपक्षी दल उनकी विचारधारा तथा सम्पूर्ण ...

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