बाबरी मस्जिद विध्वंस आपराधिक मामला क़ानूनी दाँवपेंच और जटिल प्रक्रिया के चलते अट्ठाईस सालों से ट्रायल कोर्ट में ही लम्बित है।
लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत 30 सितंबर को अपना फैसला सुनायेगी।
इस फैसले से पूर्व मीडिया स्वराज के पाठकों के लिए पेश है राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद आंदोलन के सिलसिलेवार इतिहास पर पिछले चालीस वर्ष से अयोध्या पर रिपोर्ट करते आ रहे बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी की विस्तृत रिपोर्ट की तीसरी किश्त :
पहली किश्त पढ़ें
https://mediaswaraj.com/in-the-temple-mosque-dispute-it-was-decided-many-times-before-independence/
दूसरी किश्त पढ़ें
https://mediaswaraj.com/ram-mandir-babri-masjid-had-become-a-political-issue-since-1952/
इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव प्रधानमंत्री बने
राम मंदिर पर जनजागरण के लिए बिहार के सीतामढ़ी से 25 सितंबर, 1984 को रवाना हुई राम जानकी मोटर रथ प्रबल जनसमर्थन जुटाता हुआ लखनऊ होते हुए 31 अक्टूबर को दिल्ली पहुँचता है।
उसी दिन इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उत्पन्न अशांति के कारण 2 नवम्बर को प्रस्तावित विशाल हिंदू सम्मेलन स्थगित कर दिए गए।
आम चुनाव में राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत मिलता है, पर वह राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से अनुभवी नहीं थे।
इंदिरा गांधी की तरह वह भी नरम या सनातन हिंदू धर्म को तरजीह देने लगे।
उनके मुख्य सलाहकार अरुण नेहरू थे जो उत्तर प्रदेश में वीर बहादुर सिंह के माध्यम से काम कर रहे थे।
वीर बहादुर सिंह गोरखपुर के थे और हिंदू महा सभा नेता महंत अवैद्यनाथ से उनके अच्छे सम्बन्ध थे।
स्वरूपानन्द सरस्वती आज़ादी की लड़ाई में क़रीब दस साल जेल में रहे थे. राजनीतिक नेता उनका सम्मान करते थे।
बताया जाता है कि शंकाराचार्य ने राजीव गाँधी को कहा कि रामायण और महाभारत का टीवी के माध्यम से प्रचार करो जिससे इस युवाओं में राम और कृष्ण का चरित्र स्थापित हो।
राजीव गांधी की प्रेरणा से सरकारी चैनल दूरदर्शन ने रामानन्द सागर से रामायण सीरियल बनवाया।
जय श्री राम और हर हर महादेव का नारा शंकराचार्य स्वरूपानंद ने सुझाया था जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
माना जाता है कि इन धारावाहिकों के प्रसारण से देश में रामजी का वातावरण बना जिसे बाद के दिनों में राजनीति वाले भुनाते रहे।
जब जय श्रीराम का नारा अत्यधिक प्रचलित हो गया तब विश्व हिंदू परिषद ने भी जय श्री राम का अपना लिया।
शंकराचार्य के कहना है कि उन्होंने 1985 में राजीव गाँधी को राम मन्दिर का ताला खुलवाने के लिए कहा, जिसे गाँधी मान गए थे।
इसी बीच विश्व हिंदू परिषद ने विवादित राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने के लिए फिर आंदोलन तेज़ कर दिया और शिव रात्रि 6 मार्च 1986 तक ताला न खुला तो ज़बरन ताला खोलने की धमकी भी दी गयी।
आंदोलन धार देने के लिए आक्रामक बजरंग दल का गठन किया जाता है।
जनभावनाओं को संतुष्ट करने के लिए उत्तर प्रदेश की श्रीपति मिश्र सरकार पहले ही ने राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल के समीप क़रीब 42 एकड़ ज़मीन विशाल राम कथा पार्क के निर्माण के लिए अधिग्रहीत कर लिया था।
सरयू नदी से अयोध्या के पुराने घाटों की तरफ़ नहर निकालकर राम की पैड़ी बनाने का काम भी शुरू हो गया था. लेकिन संघ से जुड़े हिन्दुत्ववादी संगठन इतने से संतुष्ट नहीं होते।
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवादित परिसर का ताला खुला
अचानक फ़ैज़ाबाद ज़िला अदालत में एक वक़ील उमेश चंद्र पांडेय ने ताला खोलने की अर्ज़ी डाली, जबकि वहाँ लंबित मुक़दमों से संबंध नहीं था।
वकील श्री पांडेय का कहना है कि अयोध्या निवासी होने के नाते राम जन्मभूमि में मेरी आस्था थी।
मैंने इस पर लेख लिखे थे। अदालतों की फ़ाइलों का निरीक्षण करने पर मैंने पाया था कि विवादित मस्जिद में ताला लगाने का कोई लिखित आदेश पत्रावली पर न था।
उस समय विश्व हिंदू परिषद का राम जानकी रथ बिहार से होकर अयोध्या आने वाला था।
परमहंस रामचंद्र दास ने ताला न खुलने पर आत्म दाह की धमकी दे रखी थी। इस लिए सरकार दबाव में थी।
उनकी दरखास्त पर ज़िला जज ने तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट इंदू कुमार पांडेय और पुलिस कप्तान करमवीर सिंह को तलब किया।
समझा जाता है कि इस पर फ़ाइलें खंगाली गयीं. लखनऊ – दिल्ली तक चर्चा हुई होगी। उसी हिसाब से सिग्नल दिए गए होंगे।
ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस कप्तान ने ज़िला जज केएम पांडेय की अदालत में उपस्थित होकर कहा कि ताला खुलने से शांति व्यवस्था क़ायम रखने में कई परेशानी नहीं होगी।
इस बयान को आधार बनाकर ज़िला जज केएम पांडेय ने ताला खोलने का आदेश कर दिया।
इस आदेश के कारण बाद में उनके ही कोर्ट जज बनाए जाने को लेकर काफ़ी खींच तान हुई।
ताला खोलने के आदेश पर घंटे भर के भीतर इस अमल करके दूरदर्शन पर प्रसारित भी कर दिया गया, जिससे यह धारणा बनी कि यह सब राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रायोजित था।
हालाँकि कतिपय लोगों का कहना है कि राजीव गांधी का ताला खुलने के बाद जानकारी दी गयी. पर इसे कोई मानने को तैयार नहीं।
कांग्रेस पार्टी को इसका बहुत राजनीतिक नुक़सान हुआ।
वास्तव में इसके बाद ही पूरे हिंदुस्तान और दुनिया को अयोध्या के राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद का पता चला।
पढ़ें कैसे खुला ताला https://mediaswaraj.com/ayodhya_disputed_mosque_lock_opened/
अब बनी बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति
मुस्लिम समुदाय 1949.तक स्थानीय स्तर पर बाबरी मस्जिद की बहाली का मुक़दमा लड़ता रहा और अयोध्या में शांति बनी रही।
लेकिन ताला खुलते की पूरे मुस्लिम जगत में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
जो मुस्लिम समुदाय पिछले 36 सालों से बाबरी मस्जिद की बहाली की लड़ाई अदालत की चौखट के भीतर लड़ रहा, उसमें अचानक खलबली मच गयी।
1986 में ताला खुलने की प्रतिक्रिया में मुस्लिम समुदाय ने मस्जिद की रक्षा के लिए बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन कर जवाबी आंदोलन चालू किया।
नेता हुए मौलाना मुज़फ़्फ़र हुसैन किछौछवी, ज़फ़रयाब जिलानी, मोहम्मद आज़म खान और दूसरे के सैयद शहाबुद्दीन।
सांसद सैय्यद शहाबुद्दीन के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद समन्वय समिति का गठन हो गया।
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुख़ारी भड़काऊ बयान देने में उमा भारती, विनय कटियार, साक्षी महराज और साध्वी रितंभरा से एक क़दम आगे थे।
कहावत है ताली एक हाथ से नहीं बजती। अब आमने-सामने दो प्रतिद्वंद्वी ताक़तें खड़ी हो गयीं।
मुस्लिम समुदाय ने 14 फ़रवरी 1986 को बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के विरोध में काला दिवस मनाया और उस दिन मेरठ में जो दंगे शुरू हुए तो फिर आगे हालात बद से बदतर होते गए।
मेरठ, मुरादनगर, हाशिमपुरा और मलियाना के भयंकर दंगों, पुलिस-पीएसी की ज़्यादतियाँ, एकतरफ़ा कार्यवाही और निर्दोष लोगों की हत्या की ख़बरें सबको मालूम हैं।
पीड़ित अब भी यदा कड़ा न्याय की गुहार लगाते हैं।
दंगों की जाँच करने वाले ज्ञान प्रकाश आयोग ने इन दंगों के पीछे अयोध्या में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवादित परिसर का ताला खोलने की घटना को रेखांकित किया है।
भावनाएँ भड़काने में इसका इस्तेमाल हुआ।
इस बीच मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के नेताओं ने राजीव गांधी को अर्दब में लेते हुए दबाव डाला कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश संसद में क़ानून बनाकर पलट दिया जाए।
राजीव गांधी सरकार इस फ़ैसले को उलटने के लिए संसद में क़ानून पारित करवा दिया।
राजीव गंधी मुस्लिम धर्म गुरुओं के आगे झुके तो मंदिर समर्थक हिंदू समुदाय और जुझारू तेवर दिखाने लगा।
फ़रवरी 1986 से जून 1987 के बीच केवल उत्तर प्रदेश में 60 छोटेबड़े दंगे हुए जिनमे 200 से ज़्यादा लोग मारे गए और क़रीब 1000 घायल हुए।
बड़े पैमाने पर सम्पत्ति का भी नुक़सान हुआ।
इसी दरम्यान दिल्ली, औरंगाबाद (महाराष्ट्र), मुज़फ़्फ़रनगर, मुंबई, सूरत, बड़ोदा, हज़ारीबाग़, कोटा, बदायूँ, इंदौर, भागलपुर आदि में दंगे भड़के। भागलपुर के दंगे तो ग्रामीण क्षेत्राओं में भी फैले।
ग्रामीण क्षेत्रों में दंगे फैलने की सबसे बड़ी वजह थी क़रीब तीन लाख गाँवों से मंदिर के लिए ईंटें या शिलाएँ पूजित करके जुलूस निकाले गए थे।
आडवाणी की रथ यात्रा के ठीक पहले और बाद में देश भर में साम्प्रदायिक हिंसा हुई।
इसकी चपेट में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और बंगाल समेत 14 राज्य आ गए, सैकड़ों लोग मारे गए।
मुझे गोंडा के करनलगंज के दंगों की अभी तक याद है जब ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में छिपे लोगों को भी ढूँढ-ढूँढ कर मारा जलाया गया था।
वह वीभत्स दृश्य याद कर आज भी माँ काँप उठता है। सत्ता की राजनीति कितनी निर्मम हो सकती है।
शहर में कर्फ़्यू पुस्तक के लेखक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी वी एन राय का कहना है कि ,”अयोध्या के मन्दिर – मस्जिद विवाद ने आज़ादी के बाद भारतीय समाज में साम्प्रदायिक जहर फैलाने मे बड़ा योगदान किया है।
जन्मभूमि आंदोलन के चलते देश के उन हिस्सों में भी साम्प्रदायिक दंगे हुए जहां विभाजन के दौरान भी नहीं हुए थे.”
दिल्ली, मेरठ, आगरा, वाराणसी, कानपुर, अलीगढ़, खुर्जा, बिजनौर , सहारनपुर, हैदराबाद, भद्रक ( उड़ीसा), सीतामढ़ी, सूरत, मुंबई , कलकत्ता, भोपाल आदि तमाम शहर साम्प्रदायिक हिंसा की चपेट में आए।
निर्मोही अखाड़ा ने शंकाराचार्य से मदद माँगी
विश्व हिंदू परिषद की बढ़ी ताक़त देख जनवरी माघ मेला 1989 में निर्मोही अखाड़े के कुछ प्रतिनिधि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के यहाँ गए।
इन लोगों ने कहा महाराज जी राम जन्मभूमि का विवाद अब अखाड़े से संभल नही रहा है।
आप ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु है, अयोध्या आपके अधिकार क्षेत्र में आता है।
अतः आप हमारा सहयोग करें, और आप स्वयं इस विवाद को सुलझाने के लिए आगे आने का कष्ट करें।
निर्मोही अखाड़े बात मानकर स्वीकार कर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने सीधा हस्तक्षेप किया और 3 जून 1989 में चित्रकूट में भारी गर्मी में राम मंदिर के आंदोलन की शुरूआत किया।
इस आंदोलन में उन्होंने देश भर के 1000 बड़े संतों को बुलाया।
108 संतों ने एक साथ भगवान रामलला के जन्मभूमि और मन्दिर के पुनरुद्धार के लिए शंखनाद किया।
इस सम्मेलन में देश भर से लाखों राम भक्त शिष्य सम्मिलित हुए। हजारों सन्तों ने एकसाथ शंखनाद किया।
चित्रकूट सम्मेलन के बाद देशभर में श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार के लिए सन्त सम्मेलन का सिलसिला तेजी से आरम्भ किया।
1989 में उत्तर प्रदेश और केंद्र में राजीव गांधी के कांग्रेस की सरकार थी, दिसंबर 1989 में लोकसभा के चुनाव के पूर्व शंकाराचार्य ने आंदोलन किया।
उनका कहना है कि अक्टूबर 1989 में भक्तों-बुद्धिजीवियों के साथ अयोध्या में श्री जन्मभूमि में रामलला के दर्शन करके वास्तु और मन्दिर स्थापत्य के साक्ष्य एकत्र किए।
19 अक्टूबर 1989 न्यायालय में राम जन्मभूमि का मजबूत पक्ष रखने के लिए शंकराचार्य ने अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति गठित की।
आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा, भाजपा खुलकर सामने आयी
विश्व हिंदू परिषद का मंदिर आंदोलन अब ज़ोर पकड़ चुका था।
सरकार से सुलह समझौते की बातें हुईं कि हिंदू मस्जिद पीछे छोड़कर राम चबूतरे से आगे ख़ाली ज़मीन पर मंदिर बना लें।
मगर संघ परिवार इन सबको नकार देता है।
हिंदू और मुस्लिम दोनों के तरफ़ से देशभर में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति चलती है।
स्टेज तैयार देख अब भाजपा खुलकर मंदिर आंदोलन के साथ आ जाती है।
भारतीय जनता पार्टी ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि अदालत इस मामले का फ़ैसला नहीं कर सकती और सरकार समझौते अथवा संसद में क़ानून बनाकर राम जनम स्थान हिन्दुओं को सौंप दे।
उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि चारों मुक़दमे फ़ैज़ाबाद से अपने पास मँगाकर जल्दी फ़ैसला कर दिया जाए।
10 जुलाई 1989 को हाईकोर्ट मामले अपने पास मंगाने का आदेश देती है।
हाईकोर्ट 14 अगस्त को स्थागनादेश जारी करता है कि मामले का फ़ैसला आने तक मस्जिद और सभी विवादित भूखंडों की वर्तमान स्थिति में कोई फेरबदल न किया जाए।
1989 में ही राम मन्दिर के आंदोलन के समय शंकराचार्य ने काशी के पंडितों से राम मन्दिर के शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकलवाया जो कि उत्तरायण में 7 मई 1990 तय हुआ।
प्रतिस्पर्धा में शिलान्यास
विहिप यानी विश्व हिन्दू परिषद ने शंकराचार्य से पहले ही शिलान्यास का कार्यक्रम बना लिया।
इसी वर्ष दिसम्बर में केंद्र और राज्य में चुनाव भी होने वाले थे।
विश्व हिंदू परिषद ने शंकाराचार्य को पीछे करने के लिए 9 नवम्बर को राम मंदिर के शिलान्यास और देशभर में शिला पूजन यात्राएँ निकालने की घोषणा कर दिया।
राजीव गांधी के कहने पर गृहमंत्री बूटा सिंह 27 सितम्बर को लखनऊ में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के बंगले पर विश्व हिंदू परिषद से इन यात्राओं के शांतिपूर्ण ढंग से निकालने के लिए समझौता करते हैं।
समझौते में अशोक सिंघल, महँथ अवैद्य नाथ और उनके साथी शांति सौहार्द और हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक़ यथास्थिति बनाए रखने का लिखित वादा करते हैं।
राजीव गांधी राम राज्य की स्थापना के नारे के साथ अपना चुनाव अभियान फ़ैज़ाबाद से शुरू करते हैं।
उधर विश्व हिंदू परिषद मस्जिद से कुछ दूरी पर शिलान्यास के लिए झंडा गाड़ देती है।
सरकार इस बात को साफ़ करने के लिए हाईकोर्ट जाती है कि क्या प्रस्तावित शिलान्यास का भूखंड विवादित क्षेत्र में आता है या नहीं।
7 नवम्बर को हाईकोर्ट फिर स्पष्ट करता है कि यथास्थिति के आदेश में वह भूखंड भी शामिल है।
फिर भी उत्तर प्रदेश सरकार यह कहकर 9 नवम्बर को शिलान्यास की अनुमति देती है कि मौक़े पर पैमाइश में वह भूखंड विवादित क्षेत्र से बाहर है।
माना जाता है कि संत देवरहा बाबा की सहमति से किसी फ़ार्मूले के तहत मस्जिद से क़रीब 200 फूट दूर शिलान्यास कराया गया।
शिलान्यास तो हो जाता है, पर मुस्लिम समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया देखकर सरकार आगे निर्माण रोक देती है।
याद दिला दें की इस बीच कांग्रेस से बाग़ी वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल नाम की एक तीसरी राजनीतिक शक्ति का उदय हो चुका है।
वीपी सिंह और जनता दल का रुझान स्पष्ट रूप से मुसलमानों की तरफ़ होता है।
शंकराचार्य का कहना है कि दरअसल वह शिलान्यास गर्भ गृह पर न होकर 192 फिट दूर सिंहद्वार पर किया गया।
लेकिन शिलान्यास का लाभ चुनाव में भाजपा को मिल गया।
लोकसभा में भाजपा 2 सीट से सीधे 85 सीट पर आ गयी।
कांग्रेस चुनाव हार जाती है और वीपी सिंह बाहर से भाजपा के समर्थन से प्रधानमंत्री बनते हैं।
उत्तर प्रदेश में जनता दल पुराने समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री चुनता है, जो पहले विश्व हिंदू परिषद के अयोध्या आंदोलन का विरोध कर चुके हैं।
शंकराचार्य स्वरूपानंद की गिरफ़्तारी
30 अप्रैल 1990 को, पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शंकराचार्य स्वरूपानंद द्वारिका से दिल्ली होते हुए राम जन्मभूमि का शिलान्यास करने के लिए निकल पड़े।
वाराणसी होते हुए जैसे ही वो आजमगढ़ पहुँचे उसी समय रात को ही मुलायम सिंह की सरकार ने उनको गिरफ्तार करवा लिया।
उनका आरोप है कि यह गिरफ्तारी भाजपा के दबाव में आकर के मुलायम सिंह से वीपी सिंह ने करवाया था, क्योंकि भाजपा के समर्थन से ही केन्द्र में जनता दल की सरकार चल रही थी और भाजपा ने धमकी दिया था कि यदि उनको गिरफ्तार नहीं करोगे तो हम तुम्हारी सरकार गिरा देंगे।
पुलिस रात भर उन्हें मिर्जापुर के जंगलों में घुमाती रही।
उन्हें उनका दैनिक पूजा संध्या भी नही करने दिया और अंत में रात भर जंगल मे घुमाने के पश्चात सुबह चुनार के किले में ले जाकर बंद कर दिया।
यह खबर लीक हुई तो साधु संत विभिन्न धार्मिक संगठन आम नागरिक आंदोलन करने लग गए।
गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार बंगाल, इस प्रकार से सम्पूर्ण भारत में ही आंदोलन प्रदर्शन शुरू हो गए।
अन्त में जनता के दबाव के कारण 8 मई 1990 को 9 दिन चुनार जेल में रखने के बाद सरकार ने माफी मांगते हुए बिना शर्त शंकराचार्य को मुक्त किया।
उसी वर्ष 1990 में शंकराचार्य जी ने पूरे भारत मे दशरथ कौशल्या यात्रा निकाली जिसका हिन्दू समाज के जागरण में बहुत बड़ा योगदान साबित हुआ।
इस अभियान में देश भर में लाखों लोगो के हस्ताक्षर लिए गए।
क्रमश:
लेखक राम दत्त त्रिपाठी, लगभग चालीस वर्षों से राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद का समाचार संकलन करते रहे हैं। वह क़ानून के जानकार हैं। लम्बे अरसे तक बीबीसी के संवाददाता रहे। उसके पहले साप्ताहिक संडे मेल और दैनिक अमृत प्रभात में काम किया।
ये लेखक के निजी विचार हैं।
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