लखनऊ में एशिया का सबसे बड़ा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू होने के बावजूद शहर में गोमती नदी का पानी साफ़ न होने से लोगों का ध्यान शहर की निचली धारा में बने बैराज की तरफ़ गया है.
इस बैराज के कारण गोमती लखनऊ में एक गंदी झील और बीमारियों का कारण बनकर रह गयी है. जानकार लोगों का कहना है कि नदी को साफ़ रखने के लिए उसका प्राकृतिक बहाव नही रोकना चाहिए.
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक़ ट्रीटमेंट प्लांट चालू होने के दो हफ्ते बाद 31 जनवरीको भैन्साकुंड बैराज के पास गोमती के पानी में घुलित ऑक्सीजन मात्र चार दशमलव पांच मिलीग्राम प्रति लीटर था .
एक साल पहले भी बैराज के पास घुलित ऑक्सीजन इतनी ही कम थी. देखने में भी पानी का रंग वैसा ही मटमैला है.
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक वरिष्ठ अधिकारी डाक्टर मधु भारद्वाज कहती हैं, “बैराज के पहले जो पानी रुक जाता है उसका सारा पानी की क्वालिटी पर पड़ता है, क्योंकि जब नदी बह रही होती है तो उसका स्वयं शुद्धिकरण का एक सिस्टम होता है और इसलिए बैराज के पास बहाव रुकने से नदी तालाब की तरह हो जाती है.बैराज के ऊपर कई नाले गिरते हैं,उसकी गंदगी भी रुकती है, जिसका असर पानी की क्वालिटी पर पड़ता है.”
डॉक्टर मधु कहती हैं कि, “गर्मियों में हालत और ख़राब हो जाते हैं.कई बार बैराज के पास ऑक्सीजन लगभग शून्य हो जाती है. तब हम व्यक्तिगत रूप से प्रयास करते हैं कि बैराज के फाटक खुल जाएँ और गन्दगी निकल जाए.”
प्रदूषण के कारण गोमती में मछलियों की संख्या बहुत कम हो गयी है. ऑक्सीजन कम होने से अक्सर बची खुची मछलियाँ भी दम घुटने से मर जाती हैं.
भैन्साकुंड शमसान घाट के पास बने इस बैराज का मकसद ऊपरी धारा में करीब 12 किलोमीटर दूर गऊ घाट पम्पिंग स्टेशन पर शहर की पेयजल सप्लाई के लिए पानी का स्तर बनाए रखना है.
प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट
प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गोमती जब लखनऊ के गऊ घाट पर प्रवेश करती है, तब घुलित ऑक्सीजन की मात्रा दस से बारह मिलीग्राम प्रति लीटर होती है, यानि नदी का पानी साफ़ और पीने योग्य होता है.
लेकिन गऊ घाट से भैन्साकुंड के बीच इसी 12 किलोमीटर के भीतर शहर के डेढ़ दर्जन नाले सीवेज और कूडा कचरा लेकर नदी में मिलते हैं.
बैराज के फाटक अकसर बंद रहने से नदी का बहाव बंद रहता हैं.बैराज के पास ‘सिल्ट’ और गंदगी जमा होती है और सड़ते सीवर में घातक विषाणु, जीवाणु पैदा होते हैं. कभी-कभी ये गंदगी वापस गऊ घाट तक पहुँचती है,जहां से शहर के पेयजल की सप्लाई होती है.
बैराज के पास में रहने वाले गोपाल कहते हैं कि बीस पचीस साल पहले यहाँ गोमती का पानी इतना साफ़ था कि नदी में सिक्का फेंक दो, तो उठा लें. अब नालों की गंदगी आने और बैराज का फाटक बंद होने से सिल्ट और गंदगी जमा रहती है.
बदबू,मच्छरों और कीड़े मकोड़ों से आसपास की आबादी का जीवन मुश्किल में है. यहीं पास में शमसान घाट है,जहां नदी एक गंदी झील के रूप में है और उसी गंदे पानी से लोग अंतिम संस्कार की औपचारिकताएं पूरी करते हैं. बैराज के उस पार नदी की धारा अक्सर बहुत पतली और सूखी रहती है.
लखनऊ के मेयर डाक्टर दिनेश शर्मा कहते हैं कि, “बैराज के कारण दस ग्यारह किलोमीटर नदी में पानी के ठहराव के कारण ‘सिल्ट’ और गंदगी जमा होने एक तो पानी प्रदूषित हो जाता है. दूसरे वह छेद भी बंद हो गए जो पानी के स्रोत हैं और जिनसे नदी नीचे से पानी रिचार्ज करती है.”
श्री शर्मा कहते हैं कि बैराज को गऊ घाट वाटर वर्क्स के पास ही शिफ्ट कर देना चाहिए ताकि नदी का बहाव बहाल हो और शहर को शुद्ध पेयजल भी मिलता रहे.
गोमती नदी पीलीभीत में माधो टांडा के पास एक झील से निकलकर बनारस के पास गंगा में मिलती है.लखनऊ से पहले जंगलों के कम होने और गन्ने की खेती के लिए पानी की अधिक खपत के चलते गोमती में पानी लगातार कम होता गया है.
‘कुछ करना होगा’
राज्य जल अभिकरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ गोमती का जल प्रवाह पिछले तीस वर्षों में घटकर पैंतीस फीसदी रह गया है. वर्ष 1979 में लखनऊ में गोमती का औसत जल प्रवाह 4238 क्यूसेक था, जो वर्ष 2008 में घटकर मात्र 1448 रह गया है.
लेकिन जल निगम ने लगभग तीन सौ करोड रूपये लागत की जो प्रदूषण नियंत्रण योजना तैयार की थी,उसमे न तो गोमती जल ग्रहण क्षेत्र में जल संरक्षण की कोई योजना थी और न ही उसका बहाव बहाल करने की .
नगर विकास और पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव आलोक रंजन मानते हैं, “नदी को बहना तो बहुत जरूरी है, नहीं तो प्रदूषण बढ़ जाता है. बहाव तो नदी में होना ही चाहिए.”
आलोक रंजन कहते हैं कि इस मामले में कुछ करना होगा.
श्री रंजन कहते हैं कि शहर के सभी नाले जब ‘डाइवर्ट’ होकर भरवारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में जाएंगे तब नदी का प्रदूषण खत्म हो जाएगा. अभी केवल कुकरैल और हैदर कैनाल को ही भरवारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में डाइवर्ट किया गया है.
लेकिन जानकार कहते हैं कि गोमती नदी को पुनर्जीवन देने के लिए उसके समूचे जलग्रहण क्षेत्र पर ध्यान देना होगा और लखनऊ में बैराज का स्वरुप बदलकर ऎसी तकनीक अपनानी होगी जिससे गऊ घाट वाटर वर्क्स पर पेयजल के लिए पानी लेने के बाद जलधारा में रुकावट न आये और नदी अविरल बहती रहे.
Published here – https://www.bbc.com/hindi/mobile/india/2011/02/110209_gomti_parttwo_psa.shtml