लखनऊ, आठ जनवरी. बाबरी मस्जिद अयोध्या विध्वंस मामले में सभी अभियुक्तों को बरी करने के ख़िलाफ़ केस के दो गवाहों ने हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की है. हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले दोनों – हाजी महमूद अहमद और सैयद एखलाक अहमद अयोध्या में विवादित परिसर के पास ही रहने वाले हैं.
इस याचिका पर अगले हफ़्ते विचार की सम्भावना है.
बाबरी मस्जिद अयोध्या विध्वंस के आपराधिक मामले का ट्रायल करने वाली विशेष सीबीआई अदालत ने पिछले साल 30 सितम्बर 2019 को अपने फ़ैसले में सभी जीवित 32 आरोपियों को बरी कर दिया था. इनमें लाल कृष्ण आडवाणी, डा मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और महंत नृत्य गोपाल दास. शेष सत्रह अभियुक्तों की मृत्यु हो चुकी थी.
याद दिला दें कि 6 दिसम्बर 1992 को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और आर एस एस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, शिव सेना, हिंदू महा सभा आदि उसके सहयोगी संगठनों के लोगों ने, सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद दिन दहाड़े विवादित बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. इसकी प्रतिक्रिया में हुई हिंसा और दंगों में दो हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे.
हिंदू समुदाय अयोध्या के विवादित बाबरी मस्जिद के स्थान को राम जन्म भूमि मानता रहा है.
बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के संयोजक ज़फ़रयाब जिलानी का कहना है कि विशेष अदालत ने तमाम गवाहियों और सबूतों पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए उसके फ़ैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी है. पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने वाले वकील हैं खालिक अहमद खान.
बाबरी मस्जिद अयोध्या का निर्माण हमलावर मुग़ल शासक बाबर के कार्यकाल में अब से क़रीब पाँच सौ सालों पहले सन 1528 में हुआ था. इस पर स्वामित्व को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय में क़रीब डेढ़ सौ सालों से संघर्ष चल रहा था.
माना जाता है कि ब्रिटिश हुकूमत ने राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद को हवा दी थी. भारत आज़ाद होने के बाद अयोध्या के कुछ हिंदुओं ने 22 / 23 दिसम्बर 1949 की रात विवादित मस्जिद के अंदर भगवान राम की बाल स्वरूप मूर्ति रख दी थी.
मामले की लम्बी सुनवाई के बाद, पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इस स्थान को राम जन्म भूमि बताते हुए हिंदुओं को सौंप दिया था.
पिछले साल 5 अगस्त 2019 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहाँ एक विशाल राम मंदिर का भूमि पूजन और शिलान्यास किया था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सुनी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या ज़िले में दूसरी ज़मीन दी है, जहां मस्जिद निर्माण की तैयारी चल रही है.
लेकिन मुस्लिम समुदाय मानता है कि उसे इंसाफ़ नहीं मिला, न मस्जिद के स्वामित्व मामले में और न उसको तोड़ने के आपराधिक मामले में.
विस्तार से जानकारी के लिए कृपया इसे सुनें
राम दत्त त्रिपाठी, पूर्व संवाददाता, बीबीसी
@ramdutttripathi
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