राम दत्त त्रिपाठी
हर सभ्य समाज में असहमति का आदर होता है .
असहमति को स्वर देने अभिव्यक्त करने के अनेक तरीक़े हैं .
सरकार या प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि वह लोगों को अपना विरोध दर्ज करने के लिए अवसर दे और उन्हें ज़रूरी सहूलियत दे .
समाज ने सरकार को शक्ति दी है कि वह शॉंति व्यवस्था क़ायम रखने के लिए विरोध की अभिव्यक्ति या प्रदर्शन को रेगुलेट अथवा नियमित / नियंत्रित करे .
मगर रेगुलेट करने का मतलब विरोध को प्रतिबंधित या ब्लॉक करना नहीं है.
छात्र आंदोलन और पत्रकारिता का मेरा अनुभव है जहॉं मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारी विरोध करने वालों से संवाद करके उचित स्थान , रास्ता देते हैं वहॉं उपद्रव और हिंसा नहीं होती .
जब प्रशासन विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित कर अवरोध खड़े करती है तो ग़ुस्सा पैदा होता है ,
लोग छोटे – छोटे जत्थों में गंतव्य तक पहुँचने की कोशिश करते हैं और पुलिस से टकराव होता है .
लोकनायक जय प्रकाश नारायण कहते थे की विरोध रबर की गेंद जैसा होता है, इसे जितना मारेंगे दबाएँगे वह उतना ज़ोर से उछलेगी।
स्थानीय मजिस्ट्रेट का व्यवहार और ऑंख का लिहाज़ भीड़ को नियंत्रित करने में बहुत कारगर होता है .
लखनऊ में एक मजिस्ट्रेट थे चाचा ज़ैदी। सालों साल वह विधान सभा के सामने हँसते मुस्कराते प्रदर्शन हैंडल करते थे। पुलिस दूर खड़ी रहती थी।
उल्टे रुकावट और दमनात्मक व्यवहार आंदोलन को ऊर्जा देता है . टकराव का कारण बनता है।
हाल ही में मुंबई का शांतिपूर्ण प्रदर्शन और दिल्ली , लखनऊ की हिंसा दो उदाहरण हैं .
सरकार को चाहिए कि वह विरोध की अभिव्यक्ति को कुचलने की कोशिश न करे . मैंने पहली बार सुना की पूरे प्रदेश में धारा १४४ लगायी गयी। यह तो लोकल मजिस्ट्रेट का अधिकार है।
बेहतर होगा सरकार लोकल मजिस्ट्रेट और पुलिस को स्थानीय परिस्थिति के अनुसार अपने विवेक से काम करने दे .
विरोध प्रदर्शन के आयोजकों की भी ज़िम्मेदारी है कि हिंसा और अव्यवस्था रोकें . शॉंति व्यवस्था क़ायम रखने में मदद करें .
हमें यह समझना चाहिए कि आम आदमी, विशेषकर कमज़ोर आदमी हिंसक विरोध में शामिल नहीं हो सकता। सरकार के पास हिंसा की ताक़त कहीं अधिक है। पुलिस, अर्ध सैनिक बल और सेना। इनके पास बंदूक़ की ताक़त है।
महात्मा गांधी ने हमें शांतिपूर्ण, अहिंसात्मक सत्याग्रह का हथियार दिया, जिससे करोड़ों लोग आज़ादी की लड़ाई से जुड़ सके और देश में लोकतांत्रिक गणराज्य क़ायम हो सका।
अगर आज़ादी हिंसा के रास्ते आती तो हमें लोकतंत्र नहीं मिलता।