भारतीय पुलिस सेवा के दो अधिकारी दो दिनों के अंदर भ्रष्टाचार में निलंबित किये गये हैं। ये जिलों की कप्तानी कर रहे थे।
इसे किस तरह देखा जाये?
क्या इसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की उपलब्धियों में गिना जाये।
अथवा क्या इसे सरकार नाकामी माना जाये?
पिछले साल ही नोएडा के पुलिस कप्तान ने एक लंबा पत्र लिखकर बताया था कि कप्तानों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर रिश्वत चल रही है
जिन ज़िलों के लिए इशारा था, उनके साथ-साथ शिकायतकर्ता को भी ज़िले के चार्ज से हटा दिया गया।
जॉंच बैठी मगर पता नहीं क्या हुआ?
पुलिस कप्तानों की नियुक्ति शासन के सर्वोच्च स्तर से होती है।
अफ़सरों का पूरा चिट्ठा सामने होता है।
उसके बाद भी अगर रिश्वत देकर या राजनीतिक पहुँच से कोई अधिकारी कप्तानी पा जाता है, तो हम उनसे क्या अपेक्षा करेंगे?
निश्चय ही वह थाने बेंचेंगे, गिट्टी-मोरंग ढोने वाले ट्रक वालों से पैसे वसूलेंगे।
माफिया को संरक्षण देंगे। सत्ताधारी दल के नेताओं के ग़लत कार्यों को संरक्षण देंगे।
बाक़ी सेवाएँ भी अछूती नहीं हैं।
खबरें आ रही हैं कि कोरोना की रोकथाम के लिए जो किट्स ख़रीदी गयीं, उनमें भारी कमीशन लिया गया।
अस्पतालों में डाक्टरों के लिए जो पर्सनल प्रोटेक्शन किट ख़रीदी गयीं वह बहुत घटिया दर्जे की थीं।
भ्रष्टाचार का दीमक हमारे सिस्टम में हर जगह घुस गया है।
नियुक्ति, तबादला, पोस्टिंग, ठेका, कोटा हर जगह।
जिन पर भ्रष्टाचार रोकने की ज़िम्मेदारी, वही उसमें लिप्त
दुर्भाग्य है कि आल इंडिया सर्विसेज़ के जिन अधिकारियों को संविधान का संरक्षण है, अच्छा वेतन, बंगला, गाड़ी जैसी ज़रूरी सुविधाएँ हैं, उनमें कदाचार अब आम बात हो गयी है।
या कहें कि जिन पर भ्रष्टाचार रोकने की ज़िम्मेदारी है वही उसमें लिप्त हो गये हैं।
जेपी आंदोलन के दौरान हमारी प्रमुख मॉंग थी कि भ्रष्टाचार रोकने लिए लोकायुक्त नियुक्त हों वही निष्क्रिय या भ्रष्टाचार के आरोप से घिर गये।
अन्ना आंदोलन से उपजी सरकार ने भी सिस्टम या कार्य प्रणाली में कोई ठोस बदलाव नहीं किया।
समाज भ्रष्टाचार की स्वीकृति बढ़ती जा रही है।
खर्चीली चुनाव प्रणाली में ईमानदार राजनीतिक कार्यकर्ता का संसद विधान सभा पहुँचना असंभव सा होता जा रहा है।
संसद और विधानसभाओं का चरित्र बदले बिना भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात सोचना भी बेकार है।
अंततः सब कुछ राजनीति से ही कंट्रोल होता है।
राजनीति ही भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत है, उसको बदले बिना कोई सार्थक बदलाव असंभव है।
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