पिछले कुछ वर्षों में गोमती सफाई पर 200 करोड रुपयों से अधिक खर्च करने के बावजूद रविवार को लखनऊ के मशहूर कुड़ियाघाट पर हजारों मछलियाँ तड़प – तड़प कर मर गईं. माना जा रहा है कि ये मछलियाँ ऑक्सीजन की कमी से मरीं.
कुड़ियाघाट पुराने लखनऊ का सबसे महत्वपूर्ण घाट है जहाँ रोज सैकड़ों लोग नहाने, पूजा और अन्य रीति-रिवाज के लिए आते हैं.
रविवार की सुबह नदी तट पर आने वाले लोगों ने देखा कि हजारों की तादाद में मछलियाँ पानी की सतह पर आकर दम तोड़ रही हैं.
घाट पर पुरोहिती का काम करने वाले लल्लू गुरु ने बताया, “यहाँ पर पाटा नाले, वजीरगंज नाले का पानी नदी में गिराए जाने से ऑक्सीजन कम हो गई. इस वजह से दसियों लाख मछलियाँ कल सुबह सात से लेकर दस बजे तक इस तरह तड़प-तड़प कर मरी हैं, जिसका वर्णन हम नहीं कर सकते.”
लल्लू गुरु का कहना है कि बदबू के कारण घाट पर बैठा नही जा रहा था.
गोमती में गंदा पानी
इधर मछलियों के मरने की खबर पाकर अनेक मछुआरे जाल लेकर घाट तक पहुँच गए और आक्सीजन की कमी से तड़प रही अथवा दम तोड़ चुकी मछलियों को पकड़ कर ले गए.
कुड़ियाघाट से ऊपर कुछ ही दूरी पर दौलतगंज में ट्रीटमेंट प्लांट लगा है जहाँ पर सरकटा नाला, पाटा नाला, नगरिया नाला और गऊ घाट नालों का सीवेज साफ़ किया जाता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ से बिना साफ किए गए गंदे पानी को सीधे गोमती में बहाया जा रहा था.
दौलतगंज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अब से दस साल पहले लगभग 29 करोड़ रुपए की लागत से भारत सरकार की सहायता से लगाया गया था. इसका रख-रखाव जल निगम द्वारा किया जाता है. जलनिगम ही लगभग 170 करोड़ रुपए की लागत से बने भरवारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन करता है.
जलनिगम की गोमती प्रदूषण इकाई के महाप्रबंधक जेए अंसारी का कहना है, “इन दिनों नगर निगम सरकटा नाले की सफाई कर रहा है इसलिए उसका पानी ट्रीटमेंट प्लांट में न आकर सीधे नदी में जा रहा था. हो सकता है इसकी वजह से नदी में प्रदूषण बढ़ गया हो.”
जेए अंसारी ने ये भी बताया कि निचली धारा में लक्ष्मण मेला मैदान के पास जल संस्थान के पुराने पम्प ठीक से काम नही कर रहें हैं, इसलिए वहाँ नालों का सीवेज पम्प होकर भरवारा ट्रीटमेंट प्लांट जाने के बजाय सीधे नदी में जाता है.
इन दिनों नदी में पानी कम होने से बैराज के फाटक बंद थे, इसलिए ये गंदगी भी पलट कर उपरी धारा में पहुँच गई होगी.
प्रदूषण
जल निगम अधिकारियों के अनुसार हाल ही में नदी के पानी का वैज्ञानिक परिक्षण कराया गया था. इस परीक्षण के अनुसार उपरी धारा में गऊघाट पर गोमती में घुलित आक्सीजन की मात्रा 7.1 थी, जबकि निचली धारा में बैराज के पास 3.7. इसका मतलब यह हुआ कि शहर के गंदे नाले अब भी गोमती को प्रदूषित कर रहें हैं.
नदी के किनारे रहने वाले लोग बताते हैं कि लखनऊ की एक शराब फैक्ट्री और सीतापुर की चीनी मिलें भी कभी-कभी अपना शीरा व गंदा पानी नदी में डाल देती हैं. घाट पर ही रहने वाले श्रवण तिवारी कहते हैं कि नदी की उपरी धारा में हरगांव चीनी मिल का गंदा पानी छोड़ने से जहर फ़ैल गया, जिससे मछलियाँ मर गईं.
इन दिनों में गोमती नदी में पानी भी काफी कम है. ऊपर से जो कुछ पानी आता भी हैं वह गऊघाट में शहर की पेयजल सप्लाई के लिए निकाल लिया जाता है.
फिर सीवर का करोड़ों लीटर गंदा पानी नदी में डाला जाता है. बहाव न होने से ढेर सारा कचरा और सिल्ट जमा हो गया है. ऊपर से सूरज की गर्मी… सब मिलाकर गोमती में इतनी जहरीली गैस बनी कि नदी में आक्सीजन कम हो गई और मछलियों का दम घुट गया.
लेकिन पानी गंदा होने के बावजूद शहर में सैकड़ों ऐसे मजबूर लोग हैं, जिनके पास नहाने-पीने के पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए गोमती के अलावा और कोई सहारा नही है.