पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस साल दिमागी बुखार से कम कम 475 बच्चों की मृत्यु हो गई है. इससे कहीं अधिक तादाद में बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग हो गए हैं.
मरने वालों में 50 बच्चे सीमावर्ती बिहार के हैं, जो इलाज के लिए गोरखपुर मेडिकल कॉलेज आए थे.
डाक्टरों का कहना है कि इन मौतों के लिए जापानी इंसेफ़्लाइटिस के अलावा दूषित जल से पैदा होने वाले एंटेरोवायरस भी ज़िम्मेदार हैं.
सरकारी आँकड़ों के हिसाब से पिछले पांच सालों में इस बीमारी से चार हजार से अधिक बच्चे मारे गए हैं. जानकार लोगों के अनुसार अगर 1978 से बीमारी के प्रारंभ से जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 20 हजार से कम नहीं होगा.
उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार इस साल चार नवंबर तक पूर्वी उत्तर प्रदेश के 13 ज़िलों में दिमागी बुखार के कुल 3298 मरीज़ अस्पतालों में भर्ती हुए. इनमें से 293 मरीजों में जापानी इंसेफ़्लाइटिस वायरस की पुष्टि प्रयोगशाला की जांच में हुई है, जबकि शेष लगभग तीन हज़ार मरीजों में दिमागी बुखार के लिए अन्य एन्टेरोवायरस ज़िम्मेदार माने जाते हैं.
इसी तरह मरने वालों में 54 की मृत्यु जापानी इंसेफ़्लाइटिस से और शेष 424 की मृत्यु ‘एक्यूट इंसेफ़्लाइटिस सिंड्रोम’ या गंभीर और तेज़ दिमाग़ी बुखार से हुई.
मामले बढ़े
प्रयोगशाला से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछले साल के मुकाबले इस साल जापानी इंसेफ़्लाइटिस वायरस से पीड़ित मरीजों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है.
वैसे तो दिमागी बुखार की इस बीमारी से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 13 ज़िले गंभीर रूप से प्रभावित हैं, लेकिन गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया और महराजगंज में इस बीमारी ने सबसे ज़्यादा कहर बरपा है.
इस साल गोरखपुर जनपद में सबसे ज़्यादा 885 बच्चे बीमार हुए , इनमे से 118 कि मौत हो गई. कुशीनगर में 873 बीमार हुए और 112 की मौत हुई. देवरिया में 418 बच्चे दिमागी बुखार से ग्रसित हुए , इनमे से 65 की मृत्यु हुई, जबकि महराजगंज में 317 बीमार हुए और 48 जाने गईं.
मस्तिष्क ज्वर नाम की इस जानलेवा बीमारी से ग्रसित अन्य ज़िले हैं मऊ, आजमगढ़, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, संत कबीर नगर और बलरामपुर.
ये सभी नेपाल के सीमावर्ती और तराई के ज़िले हैं. ग़रीबी, घनी आबादी और बाढ़ तथा जल भराव इन इलाकों की सामान्य समस्या है.
टीकाकरण नहीं
जानकार लोगों का कहना है कि दिमागी बुखार का प्रकोप अन्य ज़िलों में भी है , लेकिन वहाँ की पूरी जानकारी नहीं आ पाती. गोरखपुर इस बीमारी का केंद्र है और ज़्यादातर मरीज़ स्थानीय मेडिकल कॉलेज में आते हैं, जिससे यहाँ के आंकड़े दर्ज हो जाते हैं.
पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह जानलेवा बीमारी 32 साल पहले 1978 में आई, तब से हज़ारों बच्चों की जाने गईं और हज़ारों विकलांग हो गए, लेकिन अभी तक यह बीमारी सरकार के एजेंडे में प्राथमिकता सूची में नही आ पाई है.
सन 2005 में इस बीमारी ने भयावह रूप लिया था. तब काफ़ी होहल्ले के बाद केंद्र सरकार ने चीन से बड़ी संख्या में वैक्सीन मंगाकर टीकाकरण शुरू कराया.
लेकिन उत्तर प्रदेश में इस साल अभी तक टीकाकरण नहीं हो पाया है.
राज्य सरकार ने टीकों की गुणवत्ता में कमी का बताकर टीकाकरण अभियान टाल दिया था. अब 28 नवंबर से गोरखपुर और आसपास के सात ज़िलों में टीकाकरण प्रस्तावित है.
Published here – https://www.bbc.com/hindi/india/2010/11/101104_enceflitis_deaths_vv