नेपाल :ऐसा है माओवादी नेता प्रचंड का जीवन

ऐसा है माओवादी नेता प्रचंड का जीवन
रामदत्त त्रिपाठी के साथ प्रचंड
प्रचंड ने अज्ञात जगह पर मुलाक़ात की
नेपाली के माओवादी नेता प्रचंड के बयान और माओवादी आंदोलन की तो हमेशा चर्चा होती है. लेकिन कैसा जीवन जीते हैं प्रचंड. उन्हें क्या पसंद हैं. उन्हें कौन सी फ़िल्में अच्छी लगती हैं.

इन सभी विषयों पर प्रचंड को अंदर से टटोलने की कोशिश की हमारे संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी ने.

पिछले दिनों प्रचंड ने एक अज्ञात जगह पर रामदत्त त्रिपाठी से एक विस्तृत बातचीत की.

आइए, पढ़ते हैं इस बातचीत के कुछ ख़ास अंश-

आपके बारे में बहुत कुछ कहा गया, बहुत कुछ लिखा गया है, बहुत कुछ मिथक हैं आपके बारे में. अपने बारे में हमें कुछ बताइए?

वैसे तो हम सरल ही हैं. हम एक ग़रीब किसान के घर से पैदा हुए हैं और हमारा पूरा जीवन सरल ही रहा है. हम समझते हैं कि बचपन से लेकर अब तक किसी जटिलता जैसा हमारे साथ कुछ नहीं है.

आपका नाम प्रचंड है और वैसे ही आपकी इमेज प्रचंड है. लोग बहुत डरते हैं.

कुछ लोग(हँसते हुए) हमको समझ नहीं पाते हैं जिस कारण एक मिथ जैसा बन जाता है लेकिन नज़दीक से जो समझते हैं उनके साथ वह मिथ ख़त्म हो जाता है और एक सरल रूप उनके सामने आ जाता है.

हमारे पाठकों को आप अपने बचपन के दिनों के बारे में बताइए?

हमारा जन्म तो हुआ था नेपाल के कास्की ज़िले में, जो कि पोखरा के नज़दीक है. हम जब सात वर्ष के थे तभी वहाँ से चितवन आ गए थे. पिताजी अभी भी चितवन में ही हैं.

हाई स्कूल तक की पढ़ाई शिवनगर में हुई. इसके बाद काठमांडू से इंटरमीडिएट किया. रामपुर से कृषि विज्ञान में स्नातक किया और फिर काठमांडू से लोकप्रशासन में एमए.

क्या अपने पिताजी से मिलना हो पाता है. इधर कब मुलाकात हुई?

नहीं, चार वर्षों से नहीं हुआ है. लगता है कि अब इस बार मुलाक़ात होगी.

राजनीतिक आंदोलन में कैसे आए. सीधे कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े या पहले कहीं और?

जब हम कक्षा 10 के छात्र थे, उन्हीं दिनों कम्युनिस्ट स्टूडेंट्स विंग के साथ जुड़ गए थे और वहीं से शुरू करके दो वर्ष बाद हम कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए. इसके बाद लगातार कम्युनिस्ट पार्टी में ही हैं.

प्रचंड
प्रचंड को लीज़ेंड ऑफ़ भगतसिंह जैसी फ़िल्में पसंद हैं

ऐसी स्थिति कब पैदा हुई, जब आपको बंदूक उठानी पड़ी?

वर्ष 1990 का जो घटनाक्रम रहा, उसके बाद हमको लगा कि जनता के साथ धोखा हुआ है. राजभवन में जो समझौते हुए वह हमें कतई अच्छे नहीं लगे. इससे यह महसूस हुआ कि नेपाल को एक आंदोलन की आवश्यकता है. हमारा मानना था कि देश में पूर्णरूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू होनी चाहिए.

हमने सोचा था कि संसद के अंदर जाकर हम इसके लिए संघर्ष करेंगे और इसीलिए हम संसद के अंदर भी गए. हम संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थे. हमने तीन वर्षों तक बदलाव लाने की कोशिश भी की लेकिन हमको लगा कि कुछ होने वाला नहीं है. कोई सुनने वाला नहीं है.

हमारा जो प्रभाव क्षेत्र था वहाँ पर कई फर्ज़ी आरोप लगाकर हमारे कामरेडों को जेल भेजा गया तो हमारी जनता को और हमको लगने लगा कि इस तरह से कुछ होने वाला नहीं है.

और इसलिए आपने बंदूक उठा ली.

पुलिस के दमन के ख़िलाफ़ बंदूक उठाना ज़रूरी था. परिस्थितियां ही ऐसी हो गई थीं. वैसे तो सैद्धांतिक रूप से हम भी पीपुल्स वार के पक्ष में थे. हमें संसद में रहकर भी सशस्त्र संघर्ष की तैयारी करनी पड़ी औऱ ऐसा करने के लिए हमें मजबूर होना पड़ा.

उस वक्त रोलपा में एक आंदोलन शुरू हुआ. उन दिनों कोइराला जी ही प्रधानमंत्री थे. इतना बड़ा दमन हुआ, इतनी यातना दी गई हमारे कार्यकर्ताओं को कि हम प्रतिरोध करने लगे. वहीं से सशस्त्र संघर्ष की शुरूआत हुई.

उस क्षण के बारे में बताइए जब आपको लगा कि बंदूक ही एक रास्ता है.

हमको ऐसा महसूस हुआ वर्ष 1996 में. रोमियो ऑपरेशन होने के बाद हमारे पोलित ब्यूरो की एक बैठक हुई जिसमें मैंने एक प्रस्ताव पेश किया कि अब शुरूआत करनी है और आगे जाना है. ये लोग सिर्फ़ बंदूक की भाषा समझते हैं. हमने जो 40 माँगें पेश की थी उसपर कुछ नहीं हो रहा था. उस समय देऊबा प्रधानमंत्री थे.

बैठक में मेरा प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया और हमने अपना संघर्ष शुरू कर दिया.

इस भूमिगत आंदोलन के चलते आपका पारिवारिक जीवन कैसा चलता है?

मेरा पूरा परिवार इस आंदोलन में लगा हुआ है. बच्चे, पत्नी, सभी. मेरी पत्नी पार्टी की केंद्रीय समिति की सलाहकार हैं. वह सक्रियता से लग रही हैं. परिवार से बीच-बीच में भेंट हो जाती है.

खाने पीने में आपको क्या अच्छा लगता है?

हम ब्राह्मण परिवार से हैं इसलिए दूध और घी ज़्यादा खाते थे लेकिन बाद में जब हम पूर्णकालिक होकर आंदोलन में लगे तो जहाँ हमारा ज़्यादा काम होता था वहाँ ज़्यादा माँस चलता है. फिर हमारी भी माँस खाने का आदत बन गई.

मनोरंजन के लिए क्या कुछ करते हैं?

हम सास्कृतिक कार्यक्रम देखते हैं, फ़िल्म भी अगर उपलब्ध हुई तो देख लेते हैं. सामाजिक विषयों पर आधारित फ़िल्में देखते हैं. राजनीतिक विषयों पर बनी फ़िल्में भी देखते हैं. ‘लीज़ेंड ऑफ भगत सिंह’ जैसी फ़िल्में पसंद हैं.