14 Jan 17 लखनऊ से राम दत्त त्रिपाठी का नमस्कार और मकर संक्राँति की हार्दिक शुभ कामनाएँ.
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों का नामांकन अगले मंलवार से शुरू हो जायेगा , मगर अभी तक ढेर सारा सस्पेंस बरकरार है .
भारतीय जनता पार्टी में उम्मीदवारों की सूची को लेकर कसमसाहट चल रही है , तो सत्तारूढ समाजवादी में बाप बेटे की लड़ाई के चलते प्रत्याशी और चुनाव निशान दोनो को लेकर दुविधा बरकरार है .
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले कुछ महीनों में दूसरे दलों से थोक के भाव दल बदल कराया है .
इस पाला बदल में दूसरे दलों से करीब डेढ सौ नेता भाजपा में शामिल हुए हैं.
इनमें पचीस तो वर्तमान विधान सभा के सदस्य हैं , जो बी एस पी , कॉंग्रेस, समाजवादी पार्टी और लोकदल को छोड़कर भाजपा में आये हैं .
वह भी कोई छोटे मोटे नेता नहीं हैं. इनमें विधान सभा में विरोधी दल बहुजन समाज पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य , उत्तर प्रदेश कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी और लोकदल के चौधरी दलवीर सिंह शामिल हैं.
पाला बदलने वाले ये सब नेता न केवल स्वयं बल्कि अपने समर्थकों को भी भाजपा से टिकट और पद दिलाना चाहते हैं .
नव भारत टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस दोनों अखबारों में विस्तार से खबरें हैं कि बाहरी लोगों को महत्व देने को लेकर भाजपा में बवाल और बगावत की संभावना है . कई जगह खुलकर विरोध शुरू भी हो गया है.
भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व हिन्दू पंचांग के हिसाब से शुभ दिनों का इंतजार कर रहा था . उम्मीद है कि मकर संक्रॉंति के बाद अब कभी भी भाजपा की सूची आ जायेगी .
भारतीय जनता पार्टी ने दूसरे दलों के नेताओं को जिस तरह धूम धाम से अपनी तरफ मिलाया गया है , उसके बाद उनको चुनाव में टिकट मिलना तय माना जा रहा है . साथ में यह भी तय ही है कि अब पत्रकारों को सपा के साथ – साथ भाजपा की अंतर्कलह और धूम धड़ाम पर भी नजरें रखनी पड़ेंगी .
जहॉं तक समाजवादी पार्टी का सवाल है , तो जिस तरह शुक्रवार को चुनाव आयोग में मुलायम सिंह यादव ने , वकीलों के साथ स्वयं भी उपस्थित होकर , अपनी पार्टी और चुनाव निशान को बचाने की जद्दोजहद की , उससे अब इन खबरों को विराम लग गया है कि यह बाप बेटे के बीच सोचा समझा ड्रामा है.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहली जनवरी को जिस तरह जनेश्वर मिश्र पार्क के मजमें में , पिता मुलायम सिंह को अध्यक्ष पद से बेदखल किया , उसे वह कबूल नहीं कर पा रहे हैं .
अखिलेश यादव कह रहे हे हैं कि चुनाव तक वह अध्यक्ष पद नहीं छोड़ सकते , क्योंकि पता नहीं कौन मुलायम सिंह से कब किस कागज पर दस्तखत करा लें .
जबकि मुलायम कह रहे हे हैं कि न मैं बूढा हूँ और न बीमार .
साफ है पिता पुत्र में विश्वास का संकट है .
मुलायम सब कुछ बेटे को देकर अपने सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं , जबकि अखिलेश सत्ता में वापसी के लिए.
खबरें हैं कि अखिलेश की ओर से चाचा राम गोपाल यादव कांग्रेस से चुनावी तालमेल को अंतिम रूप देने में लगे हैं.
अनुमान है कि चुनाव आयोग समाजवादी पार्टी की टूट पर सोमवार को फैसला सुना देगा .
इसके साथ ही समाजवादी पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं के लिए भी फैसले की घड़ी आ जायेगी.
बहुतेरे लोग अभी तक दोनों खेमों में हाजिरी लगा रहे थे , पर अब उन्हें बाप और बेटे में से एक को चुनना होगा.
Ram Dutt Tripathi Journalist & Legal Consultant