वन अधिकारियों के अनुसार केवल उत्तर प्रदेश में नीलगाय की संख्या लगभग ढाई लाख है.
उत्तर प्रदेश में पूरब से पश्चिम तक लगभग चालीस ज़िलों के किसान इनसे परेशान हैं.
नीलगाय उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात एवं कई अन्य प्रदेशों में एक विकट समस्या बन गई हैं.
उत्तर प्रदेश के कृषि वैज्ञानिक जेपी त्रिपाठी बताते हैं कि “दालों के उत्पादन में कमी और दाम बढ़ने के पीछे मुख्य रूप से हिरन प्रजाति का वन रोज अथवा आम बोलचाल की भाषा में नीलगाय जंगली जानवर ज़िम्मेदार हैं.”
त्रिपाठी कहते हैं कि “जैसे ही दलहन की फ़सलें अंकुरित होना शुरू होती हैं, नीलगाय ये खाना शुरू कर देती है.अरहर की तो ये विशेष दुश्मन हैं.दाल का दाम जो बाज़ार में बढ़ा है उसकी वजह यही है कि यह पैदा ही नही हो पा रही.”
नीलगाय गन्ना और मक्का के अलावा धान को भी नुक़सान पहुंचाती हैं.
किसानों का कहना है कि वो रात-रात भर जागकर खेत की रखवाली करते हैं, फिर भी फ़सल की रक्षा नही कर पाते क्योंकि नीलगाय झुण्ड में चलती हैं और ख़तरनाक रूप से हिंसक हो जाती हैं.
“दालों के उत्पादन में कमी और दाम बढ़ने के पीछे मुख्य रूप से हिरन प्रजाति का वन रोज अथवा आम बोलचाल की भाषा में नीलगाय जंगली जानवर ज़िम्मेदार हैं.”
जे पी त्रिपाठी,कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक जेपी त्रिपाठी कहते हैं कि सर्वोच्च स्तर पर फैसला करके फ़सल को क्षति पहुंचाने वाली नीलगायों को मारा जाए.
त्रिपाठी ने उत्तर प्रदेश सरकार से सिफारिश की है कि नर नीलगायों का वन्ध्याकरण किया जाए.
लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्य वन्य जीव संरक्षक बीके पटनायक इसे व्यावहारिक नहीं मानते.
वाइल्ड लाइफ संस्थान का हवाला देते हुए पटनायक कहते हैं कि नीलगाय जंगलों में नहीं, खुले मैदानी इलाकों में रहते हैं और वन्ध्याकरण भी आसान नहीं है. उनका कहना है कि वन्ध्याकरण तभी कारगर हो सकता है जब 80 प्रतिशत नर आबादी का लगातार बीस सालों तक वन्ध्याकरण किया जाए, जो मुश्किल है.
पटनायक कहते हैं कि “नीलगायों को पकड़ना यों भी मुश्किल है क्योंकि जानवरों को बेहोश करने वाली सुई इन पर असर नही करती.”
पटनायक का कहना है कि उत्तर प्रदेश में सरकार ने नीलगायों को मारने के लिए परमिट देने की प्रक्रिया बहुत सरल कर दी है.
अब लोग जंगल विभाग के अलावा बीडीओ और तहसीलदार से भी नीलगाय मारने का परमिट ले सकते हैं.
रायबरेली और एटा में दो दो सौ लोगों ने नीलगायों को मारने का परमिट लिया है.
सभी जगह किसानों का कहना है कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के कारण वे खुद तो इसे नही मार सकते, लेकिन दूसरे यानि मुस्लिम समुदाय के लोग इसे मारें तो कोई एतराज़ नहीं.
कई जगह गाँव वालों ने चन्दा करके राजस्थान से नीलगाय मारने वालों को बुलाया.
जंगल विभाग के अधिकारी कहते हैं कि किसान तारों की बाड़ लगाकर उनमे बैटरी से बिजली लगा लें तो नीलगाय खेतों में नही घुसेंगी या फिर सात आठ फुट चहारदीवारी बना लें. लेकिन छोटे किसानों के पास इतना पैसा कहाँ है?
Published here- https://www.bbc.com/hindi/lg/india/2010/08/100821_pulses_neelgai_ap.shtml