महाकुंभ प्रसारण अधिकार की नीलामी नहीं होगी

धार्मिक आयोजनों के अधिकार बेचने के प्रस्ताव को लेकर भारी विरोध था.

समझा जाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कुंभ मेले को, क्रिकेट मैच अथवा दूसरे मनोरंजन कार्यक्रमों की तरह, कमाई का जरिया बनाने का विवादास्पद प्रस्ताव ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया है.

साधू संतों और कुछ अधिकारियों के मुखर विरोध के चलते मजबूरी में इस प्रस्ताव पर अमल न करने की रणनीति अपनाई जा रही है.

शासन में कुंभ मेला आयोजन के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कुमार ने बीबीसी को बताया कि आगामी महाकुंभ मेले के दौरान विज्ञापन और टेलीकास्ट राइट्स की नीलामी करके राजस्व प्राप्त करने का “प्रस्ताव मंजूर नही किया गया है.”

विभाग के अन्य अधिकारियों का कहना है कि प्रस्ताव अभी औपचारिक रूप से रद्द भी नही किया गया है. संबंधित पत्रावली को फिलहाल एक किनारे रख दिया गया है.

प्रस्ताव को एक किनारे करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि साधू संतों के अलावा इलाहाबाद में मेला की व्यवस्था से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पर मौखिक और लिखित आपति दर्ज कराते हुए बहुत सोच विचार के बाद ही इस पर निर्णय लेने की सलाह दी है.

इलाहाबाद के मंडल आयुक्त देवेश चतुर्वेदी ने कहा, “हमने शासन को बताया है कि परम्परागत रूप से यह एक विशुद्ध धार्मिक और आध्यात्मिक पर्व है और इसके व्यवसायीकरण के प्रस्ताव पर सभी सम्बंधित विभागों के साथ बैठक करने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित होगा.”

स्वामित्व

शासन को भेजे गए पत्र में इस कानूनी पहलू पर गौर करने को कहा गया है क्या कुंभ मेला पर सरकार का स्वामित्व है, क्योंकि साधू संतों के अनुसार यह मेला उनका है. वे लोग ही इस मेले के मुख्य हितसाधक हैं इसलिए उनसे विचार विमर्श के बाद ही कोई निर्णय लिया जाए.

श्री चतुर्वेदी के अनुसार दूसरा बिंदु यह है कि अगर किसी एक चैनल को कुंभ मेले के प्रसारण अधिकार बेच दिए जाएं तो भी उसके एकाधिकार को लागू कैसे किया जायेगा और दूसरे चैनल विरोध करेंगे.

उन्होंने तीसरा बिंदु यह लिखा है कि एक विशाल और खुले मैदान में आने वाले करोड़ों लोगों को मेले के चित्र लेने से कैसे रोका जायेगा?

महाकुंभ की तैयारियां शुरू हो गई हैं.

ज्ञात हुआ है कि पिछले दिनों मुख्य सचिव कार्यालय में बैठक के दौरान इलाहाबाद के पुलिस महानिरीक्षक आलोक शर्मा ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था. श्री शर्मा को 2001 के इलाहाबाद कुंभ मेले के अलावा 2010 के हरिद्वार कुंभ का भी अनुभव है.

मालूम हुआ है कि मेले से जुड़े अधिकारियों ने शासन से कह दिया है कि वे इस प्रस्ताव को उचित नही समझते , इससे मेला के प्रबंध में बेमतलब कठिनाइयां आयेंगी. फिर भी अगर सरकार चाहती ही है कि ऐसा हो तो वह इस काम को सूचना विभाग के माध्यम से करा ले, क्योंकि उसे मीडिया का अनुभव है.

यह मामला कई दिनों से मीडिया में चर्चित है लेकिन अभी तक सरकार अथवा मुख्य सचिव ने औपचारिक रूप से कोई बयान देना उचित नही समझा.

मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने निर्देश दिया था कि “ कुंभ मेला 2012-13 में विज्ञापन के अधिकार की नीलामी करके एवं टेलीकास्ट राइट्स से शासन के लिए राजस्व प्राप्त” किये जायें.

व्यावसायीकरण

साधू–संन्यासी हमेशा से मेले में व्यावसायिक गतिविधियों का विरोध करते रहे हैं. सन २००१ के कुंभ मेले के दौरान कुछ निजी होटलों को मेला क्षेत्र में जमीन देने का व्यापक विरोध हुआ था. यह मामला अदालत में गया और अंत में मेला प्रशासन को अपना निर्णय रद्द करना पड़ा.

तत्कालीन कुंभ मेला आयुक्त सदाकांत ने अपनी प्रशासनिक रिपोर्ट में लिखा है, “ विज्ञापन एजेंसियों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को किसी भी तरह से मेले में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इनका मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना रहता है और मेले की पवित्रता और मर्यादा को क्षति पहुंचाते हुए ये सीधे व्यावसायिक दृष्टिकोण से यहाँ आते हैं”

महाकुंभ मेला अगले वर्ष जनवरी में शुरू होकर मार्च तक चलेगा. अनुमान है कि देश विदेश से तीन चार करोड लोग इस मेले में शामिल होंगे. भारत सरकार इस मेले की व्यवस्था के लिए एक हजार करोड रूपये का अनुदान दे रही है, और इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार के पास इस मेले के लिए संसाधनों की कोई कमी भी नही है.

महा कुंभ मेला हिंदू समुदाय का हजारों साल पुराना पर्व है. साधू-सन्यासियों के अखाड़े, उनके गृहस्थ भक्त और अन्य धार्मिक, सामाजिक संगठन इसके मुख्य आयोजक होते हैं.

चूँकि इस पर्व में बड़ी तादाद में नागरिक शामिल होतें है , इसलिए सरकार की भूमिका केवल यातायात नियंत्रण, सुरक्षा, साफ़-सफाई एवं अन्य मूलभूत नागरिक सुविधाएँ देने तक सीमित होती हैं.

https://www.bbc.com/hindi/india/2012/09/120902_kumbh_prop_cancel_fma.shtml