एक ऐसा शख्स जिसके बताए प्रचंड पथ पर चलने के लिए हज़ारों युवक युवतियाँ घर बार छोड़ कर जंगल-जंगल भटक रहे हैं, मरने मारने पर उतारू हैं.
एक व्यक्ति जो 21 साल से भूमिगत है और पिछले चार वर्षों से अपने पिता से नहीं मिल सका है.
जिसे कल तक नेपाल सरकार आतंकवाद का सरगना मानती थी और जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए लाखों का इनाम घोषित था और जो नेपाली समाज के एक बड़े तबके के लिए सामाजिक राजनीतिक क्रांति का नायक है, स्वप्नद्रष्टा है.
पुष्प कमल दहल यानि प्रचंड से मिलने की कोशिश मैंने फ़रवरी में शुरु की थी, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के सशस्त्र संघर्ष की 10 वीं वर्षगांठ पर. जवाब बस यही आता था, सोचेंगे.
इंतज़ार की घड़ी
फिर एक दिन संदेश आ ही गया कि ‘हमारे चेयरमैन आपसे मिलने के लिए तैयार हैं, समय और स्थान बाद में बताया जाएगा, शर्त यह है कि अकेले आना होगा और पूरी गोपनीयता बरतनी होगी.’
मगर बीबीसी इस तरह शेर की माँद में कैसे जाने दे इसलिए अनुमति देने के साथ ही संपादकों ने अपनी चिंताओं से मुझे वाकिफ़ करा दिया और अपना ख्याल रखने की नेक सलाह दी.
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| रामदत्त त्रिपाठी हाल ही में नेपाल में माओवादियों से भी मिलकर आए थे |
बहरहाल, मैं उनके बताए गए शहर पहुँच कर अगले संदेश का इंतज़ार करने लगा. अचानक फ़ोन की घंटी बजी और आवाज़ आई “मैं कृष्ण प्रसाद भट्टाराई बोल रहा हूं. आप ठीक इतने बज कर इतने मिनट पर फलाँ जगह खड़े मिलिए. वहां से आपको हमारे आदमी ले जाएंगे और प्रोग्राम हो जाएगा.”
मुझे संशय हुआ, कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बार मुझे भट्टाराई जी से ही मिलवाकर वापस करवा दिया जाएगा.
मैंने कई हफ़्तों से प्रचंड से जुड़ी तमाम सामग्री छान मारी थी और उस रात मेरी सपने में दाढ़ी रखे हुए प्रचंड से मुलाक़ात हो चुकी थी क्योंकि बीबीसी टीवी के साथ फ़रवरी में वो दाढ़ी के साथ ही नज़र आए थे.
मैं तयशुदा समय से कुछ पहले ही निर्धारित जगह पर पहुँच गया. उनके एक व्यक्ति आया और मुझे ले गया. गाड़ी दूर ही छोड़नी पड़ी.
निर्जन इलाक़े में मुलाक़ात
कंक्रीट के इस जंगल से हम एक निर्जन इमारत में पहुँचे. हमारे गाइड ने एक कमरा खटखटाया, कोई आवाज़ नहीं आई.
दूसरे कमरे से भी कोई उत्तर नहीं. सीढ़ियों से हम नीचे उतरने लगे तो एक सज्जन कमरे से निकले और पूछा आप ही रामदत्त त्रिपाठी हैं.
इनके चेहरे पर दाढ़ी न थी और मुझे लगा कि ये सज्जन अब मुझे प्रचंड से मिलवाएँगे.
हम उनके साथ हो लिए. एक से दूसरे फिर तीसरे कमरे में जाकर वह सज्जन बिस्तर पर पालथी मार कर बैठ गए और मुझे भी बैठने का इशारा किया.
वह बिल्कुल इंटरव्यू देने की मुद्रा में आ गए और मैं आश्वस्त नहीं था कि उनका नाम क्या है.
मैंने टेपरिकॉर्डर के बजाए पहले कैमरा निकाला. ऑनलाइन के लिए तस्वीर लेने की ज़रूरत बताई और तब वह बोले कि ले लीजिए कोई बात नहीं. वह तो टीवी वालों ने किया था तो बड़ा झमेला पड़ा था, फिल्मिंग में.
सहजता
इस बात से मैं समझा कि वो तो प्रचंड ही हैं और बड़े सहज भाव से हमने चाय पी, बिस्कुट खाए. फिर अच्छी साउंड क्वालिटी के लिए उन्होंने एसी तो क्या पंखा भी बंद करने की सहमति दे दी.
माहौल इतना सहज हो गया कि बड़े असहज और कठिन सवालों पर भी हम बिना झिझके, अटके बतियाते गए. न मैंने कोई मुद्दा छोड़ा, न ही उन्होंने कोई सवाल टाला, निजी भी और सार्वजनिक भी .
बस एक बार वह कुनमुनाए, जब घड़ी ने बताया कि हमें बैठे सवा घंटा हो गया है, उनके लोग भी व्याकुल हो उठे थे.
मुझे लगा कि अब मुझे तुरंत रवाना होना चाहिए. फटाफट मैंने अपना साजो सामान बैग में भरा और चल दिया.
मुझे वापस उसी स्थान पर छोड़ दिया गया जहाँ से मुझे ले गया था. वहाँ पहुँच कर मैंने अपना फ़ोन खोला और पहला कॉल लंदन किया “इंटरव्यू हो गया.”
वह व्यक्ति जिसकी कमान में हज़ारों हथियारबंद सैनिक हैं और जिसके हाथ में नेपाल की शांति की कुँजी है, इतना सरल और सहज हो सकता है मैंने ऐसा सोचा न था.
Published here- https://www.bbc.com/hindi/regionalnews/story/2006/05/060521_rdt_fooc.shtml
Ram Dutt Tripathi Journalist & Legal Consultant
नेपाली माओवादी नेता प्रचंड से रामदत्त त्रिपाठी की बातचीत