उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त ने पूर्ववर्ती माया सरकार के करीब एक दर्जन मंत्रियों को भ्रष्टाचार, आय से अधिक संपत्ति और पद का दुरुपयोग कर सरकारी जमीनों पर कब्जे का दोषी पाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफ़ारिश की थी.
नई सरकार के सत्ता में आए चौदह महीने गुजर चुके हैं लेकिन इसके बाद भी भ्रष्टाचार के दोषी एक भी मंत्री के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अखिलेश यादव की सरकार लोकायुक्त की जाँच में भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए माया सरकार के मंत्रियों के प्रति नरमी बरत रही है?
लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन के मेहरोत्रा कार्रवाई में धीमी प्रगति से संतुष्ट नहीं हैं.
लोकायुक्त संतुष्ट नहीं
बीबीसी से बातचीत में न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने कहा कि, “मेरे संतुष्ट और असंतुष्ट होने का कोई प्रश्न नही उठता है, लेकिन मै समझता हूँ कि जांच प्रक्रिया में जो तेजी होनी चाहिए और समयबद्ध सीमा के अंतर्गत फैसले होने चाहिए वो नहीं हो रहे हैं.”
लोकायुक्त न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने मायावती के मुख्यमंत्री रहते ही उनकी सरकार के अनेक मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में जाँच करके कार्रवाई के लिए रिपोर्ट दी थी.
मायावती ने उनमें से कई मंत्रियों को बर्खास्त करके संदेश देने की विफल कोशिश की कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं. मायावती ने अपनी सरकार के करीब डेढ़ दर्जन मंत्रियों को भ्रष्टाचार अथवा अन्य गंभीर आरोपों के चलते बर्खास्त किया था.
इनमे प्रमुख हैं राजेशपति त्रिपाठी, अनंत कुमार मिश्र, बाबू सिंह कुशवाहा, रंगनाथ मिश्र, राकेश धर त्रिपाठी, फ़तेह बहादुर सिंह, राम प्रसाद चौधरी, अवध पाल सिंह यादव, बादशाह सिंह, रतन लाल अहिरवार, अकबर हुसैन, यश पाल, राजपाल त्यागी, हरिओम अवधेश वर्मा और सदल बहादुर.
मायावती ने अपनी छवि सुधारने के लिए कई मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की रिपोर्ट आए बिना ही कार्रवाई कर दी थी.
मायावती के नजदीकियों पर मेहरबानी
लेकिन तमाम गंभीर आरोपों के बावजूद नसीमुद्दीन सिद्दीकी, राम वीर उपाध्याय और राम अचल राजभर जैसे तीन बड़े मजबूत मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जो उनके नजदीक माने जाते हैं. मायावती पर स्वयं भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे.
इस सबका परिणाम यह हुआ कि पिछले साल विधान सभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की करारी हार हुई और अखिलेश यादव के हाथ में उत्तर प्रदेश की बागडोर आई.
चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने माया सरकार के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई का वादा किया था. जनता को उनसे काफी उम्मीदें भी थीं.
लेकिन अब सरकार बने चौदह महीने हो गए हैं पर अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा औपचारिक रूप से दोष सिद्ध बताए गए पूर्व मंत्रियों के खिलाफ रिपोर्टों पर कार्रवाई नही हुई है.
नियम है कि मुख्यमंत्री लोकायुक्त की रिपोर्ट स्वीकार करने के बाद सतर्कता विभाग को उन आरोपों की जाँच का आदेश देते हैं कि भ्रष्टाचार का आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नही.
पर्याप्त सबूत मिलने के बाद सतर्कता विभाग फिर शासन से मुकदमा दर्ज करने की अनुमति माँगता है. जाँच पूरी होने के बाद अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने और मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी जाती है.
न्याय विभाग से परीक्षण कराकर जल्दी निर्णय किया जाएगा.
जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार ने कई मंत्रियों के खिलाफ सतर्कता विभाग को जाँच सौंपने में ही महीनों की देरी की है.
उसके बाद सतर्कता विभाग ने इसलिए उन पर कार्रवाई नहीं की क्योंकि विभागीय अधिकारियों के अनुसार उनके यहाँ जाँच अधिकारियों के अस्सी फीसदी पद खाली हैं, और स्टाफ नही है.
कार्रवाई करने का वादा
मगर वास्तविकता यह है कि सतर्कता विभाग के अधिकारी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से स्पष्ट सन्देश का इंतजार कर रहे.
लोकायुक्त न्यायमूर्ति मेहरोत्रा का कहना है एक साल बीतने के बाद जब उन्होंने समीक्षा शुरू की तो पाया कि शासन में बड़ी धीमी गति से काम हो रहा है.
मेहरोत्रा कहते हैं, “जब मैंने समीक्षा करने के लिए लिखा तो तेजी आई कुछ, लेकिन वह तेजी भी अभी कारगर नही हुई है. परिणाम कुछ सामने नही आया है.”
बहरहाल, समझा जाता है कि लोकायुक्त की नाराजगी के बाद सरकार ने सतर्कता विभाग को जांचें जल्दी पूरी करने का इशारा दिया. इसके बाद पिछले कुछ हफ़्तों में तेजी आई है.
अब जल्दी जल्दी रिपोर्ट तैयार कर मुकदमा दर्ज करने अथवा चार्जशीट दाखिल करने के लिए शासन से अनुमति मांगी गई है.
सतर्कता निदेशालय के अधिकारियों का कहना है कि तीन पूर्व मंत्रियों रंग नाथ मिश्र , अवध पाल सिंह यादव और बादशाह सिंह के खिलाफ जाँच पूरी करके अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति मांगी गई है.
सतर्कता विभाग के प्रमुख सचिव आरएम श्रीवास्तव का कहना है कि, “न्याय विभाग से परीक्षण कराकर जल्दी निर्णय किया जाएगा.”
इनके अलावा सरकार ने पूर्व मंत्री राम अचल राजभर और चन्द्र देव यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा कायम करके जाँच के आदेश दे दिए हैं.
मगर चार पूर्व मंत्रियों राम वीर उपाध्याय, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा और राकेश धर त्रिपाठी के खिलाफ मुकदमा कायम करने के लिए शासन की अनुमति का इंतज़ार है.
कब होगी कार्रवाई?
लोक आयुक्त संवैधानिक संस्था है. हम उस पर बहुत ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे. उसकी संस्तुतियों का अध्ययन सरकार करती है और यदि कहीं कोई आरोप सुनिश्चित होता है तो फिर कार्यवाही हो, उसमे जाँच हो.
बताते चलें कि माया सरकार के तीन पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा, बादशाह सिंह और चन्द्र देव यादव एक घोटाले के मामले में पहले से जेल में हैं.
इस बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में कहा है कि, “मायावती सरकार के कुछ मंत्री जेल में हैं. कुछ और जेल जा सकते हैं.”
लेकिन विधान सभा में बहुजन समाज पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य चेतावनी देते हैं कि अगर राजनीतिक द्वेषवश कोई कार्रवाई होती है तो यह ठीक नही होगा.
श्री मौर्य कहते हैं, “लोकायुक्त संवैधानिक संस्था है. हम उस पर बहुत ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहेंगे. उसकी संस्तुतियों का अध्ययन सरकार करती है और यदि कहीं कोई आरोप सुनिश्चित होता है तो फिर कार्रवाई हो, उसमे जाँच हो. लेकिन अनायास कि पूर्व में बसपा सरकार के मंत्रियों द्वारा यह कार्य किया गया है, इसलिए जाँच होती है तो हम समझते हैं कि समाजवादी पार्टी सरकार अपने भविष्य के लिए काँटा बो रही है.”
जाहिर है कि चूँकि यह कार्रवाई लोकायुक्त के माध्यम से हो रही है इसलिए बहुजन समाज पार्टी चाहते हुए भी अपने नेताओं के बचाव में ज़्यादा कुछ नही कर पाएगी.
https://www.bbc.com/hindi/india/2013/05/130515_mayawati_ministers_up_government_pk
Ram Dutt Tripathi Journalist & Legal Consultant














