कॉंग्रेस की कमजोरी

मथुरा चिंतन शिविर

क्या कांग्रेस नेतृत्व अपनी कमजोरी के मूलभूत प्रश्नों पर विचार करेगा ?
राम दत्त त्रिपाठी

कांग्रेस ने पार्टी को उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवित करने के लिए इस महीने के तीसरे हफ्ते मथुरा में एक चिंतन शिविर का आयोजन किया हैं . बताया गया है कि पिछले लोक सभा चुनाव में पराजय के बाद यह पार्टा का सबसे बड़ा शिविर होगा .
पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी स्वयं इस चिंतन शिविर में शामिल होकर उत्तर प्रदेश के नेताओं से आमने – सामने होंगे .
कहने की जरूरत नहीं कि संसद में 80 सीटों वाले देश के हृदयस्थल प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत किये बिना कांग्रेस दिल्ली में वापसी के बारे में सोच भी नहीं सकती .
याद दिला दें कि कांग्रेस पार्टी पिछले पचीस वर्षों से उत्तर प्रदेश में लगातार न केवल सत्ता से बाहर है बल्कि इस समय चौथे नंबर पर है. 1989 के बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया है .
पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी अमेठी – रायबरेली में सिमट गयी थी .
पार्टी में जान फूंकने के लिए पहले भी इस तरह के चिंतन शिविर हो चुके हैं . मगर इनसे पार्टी के पतन की गति नहीं रुकी .
मुझे तो कभी – कभी शक होता है कि सोनिया गॉंधी और राहुल उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करना भी चाहते हैं या नहीं .
सवाल उठता है कि वे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं तो वे रायबरेली और अमेठी के बाहर कदम क्यों नहीं रखते ?
वे चाहें तो अपने निर्वाचन क्षेत्र में आते – जाते अगल- बगल लखनऊ , कानपुर , इलाहाबाद , वाराणसी , गोरखपुर और फैजाबाद तो कवर ही कर सकते हैं .इससे वे पूर्वांचल और अवध के बड़े भूभाग से आसानी से जुड़े रह सकते हैं .
मगर दस जनपथ में पता नहीं कौन सा चुम्बक लगा है कि ये दोनों उसके बाहर निकलना ही नहीं चाहते . वरना पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रुहेलखंड भी दिल्ली से दूर नहीं हैं .
कुछ दिनों में लोग भूल भी जायेंगे कि नेहरू परिवार का पैतृक घर आनंद भवन इलाहाबाद में है , या फिर यह कि नेहरू जी का अपना अखबार नेशनल हेराल्ड लखनऊ से निकलता था और इंदिरा जी यहॉं भी रहती थीं .
शक की दूसरी वजह यह है कि सोनिया गॉंधी पिछले दो दशक से उत्तर प्रदेश में कोई स्थानीय नेतृत्व उभरने ही नहीं दे रही हैं . अगर कोई नेता जरा अपनी जड़ें मजबूत करना चाहे तो उसे तुरंत उखाड़ कर फेंक दिया जाता है . वर्तमान में राज्य में पार्टी अध्यक्ष और विधान मंडल दल के नेता दोनों की पहचान अपने गृह जनपद से बाहर नहीं हैं .
स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के जो नेता हैं भी उनका शीर्ष नेतृत्व से कोई भावनात्मक लगाव नहीं है . कार्यकर्ताओं के सुख दु:ख से कोई सरोकार नहीं है. पूरी तरह से संवादहीनता है. तो फिर गलियों और चौराहों पर पार्टी के लिए कौन लड़ेगा ?
जमीन तक संगठन का नेटवर्क बनाये बिना दस जनपथ को जमीनी हकीकत कैसे पता चलेगी . सर्वे एजेंसियों या अनुदानित एन जी ओ से भी नहीं .
हालत इतनी खराब है कि रायबरेली अमेठी में भी अब केवल केवल पेड वर्कर बचे हैं , राजनीतिक कार्यकर्ता और साथी नहीं .
सामाजिक – सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो भी कांग्रेस सभी वर्गों से कट चुकी है. उत्तर प्रदेश में दलित , पिछड़ा और मुस्लिम तो विशेषकर कांग्रेस से दूर है . इन वर्गों का कोई नेता पार्टी की अगली कतार में नहीं हैं .
मेरे ख्याल से कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी का सबसे बड़ा कारण पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र और नेतृत्व में प्रतिस्पर्धा का अभाव है . हर प्रदेश में कुछ लोग या परिवार पार्टी पर हावी हैं . इसलिए नया खून पार्टी से जुडता नहीं , मनोनयन की पद्धति में सक्षम , जुझारू और साफ बोलने वाले लोग आगे नहीं आ पाते .
राहुल गॉंधी ने कई बार इस कमजोरी की ओर इशारा किया हैं . युवक कांग्रेस में कुछ प्रयास भी हुए हैं . पर मुख्य संगठन में कॉरपोरेट कल्चर ही हावी है.
विचार धारा या नीतियों के धरातल पर कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों महात्मा गॉंधी , नेहरू , सुभाष चंद्र बोस पटेल , अम्बेडकर , जयप्रकाश और लोहिया की विरासत से सबसे बहुत दूर जा चुकी है .
न तो राजीव गॉंधी और न उनके बाद सोनिया और राहुल गॉंधी ने कोई ऐसा सपना दिया है जिससे देश की युवा पीढी जुडें .
ऐसी विचारधारा , नीतियॉं या कार्यक्रम भी नहीं पेश किया है जिसे लेकर पार्टी कार्यकर्ता लोगों के बीच जायें और कह सकें कि कांग्रेस पार्टी देश के सभी लोगों को खुशहाली के रास्ते पर ले जायेगी और अमन – चैन कायम होगा.
लोगों को यह भी नहीं मालूम कि विश्व के वर्तमान ज्वलंत प्रश्नों पर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का दृष्टिकोण क्या हैं ?
क्या उम्मीद करें कि मथुरा में इन बातों पर भी कुछ चिंतन होगा ?
क्या स्थानीय नेताओं को खुलकर अपनी बात कहने का मौका मिलेगा या फिर वे केवल बिग बॉस का भाषण सुनकर ताली भर बजायेंगे ?
या फिर ऐसी आशा करना भी व्यर्थ है ?
मोतीलाल और जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन की अगली कतार में इसलिए थे क्योंकि उन्होंने तमाम ऐशो आराम छोड़कर आम कार्यकर्ताओं के साथ लाठियॉं खायीं और जेल गये थे . उन्होंने युवाओं को एक सपना दिया था और आजाद भारत में सबके विकास का एक खाका पेश किया था.
उनके विपरीत राहुल गॉंधी पुराने राजमहल से निकलते राजकुमार की तरह पेश आते हैं . और इसीलिए न तो पार्टी कार्यकर्ता उनसे प्रेरित होते हैं और न आम जनता ही उनमें अपना रहनुमा देखती हैं .
दरअसल ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका संबंध केवल उत्तर प्रदेश से नहीं है. कमोबेश ये बातें दूसरे राज्यों और पूरे देश पर लागू होती हैं. अगर कांग्रेस नेतृत्व उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुनर्जीवन का मंत्र खोजकर अपनी रीति नीति बदल लेती है तो वह मंत्र पूरे देश में उसके काम आयेगा.
बात केवल कांग्रेस के पुनर्जीवन की नहीं है . देश को भी एक ऐसी मध्यमार्गी , प्रगतिशील और लोकतांत्रिक राष्ट्रीय पार्टी की जरूरत है जो हर वर्ग और हर क्षेत्र को खुशहाल बनाने के लिए काम कर सके , विशेषकर उनका जो विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गये हैं. और तभी हिन्द स्वराज्य का लक्ष्य पूरा होगा.

नोट : राम दत्त त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार हैं . वे बी बी सी के पूर्व संवाददाता हैं . ईमेल : ramdutt.tripathi@gmail.com

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