लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के अनुसार पिछली मायावती सरकार ने लखनऊ , नोएडा और बादलपुर गाँव में बनाए गए स्मारकों के लिए लगभग 750 एकड़ बेशकीमती जमीन इस्तेमाल की और इन स्मारकों के निर्माण पर जनता के टैक्स के धन से लगभग छह हजार करोड रूपये खर्च किये गए.
इस छह हजार करोड की लागत में वहाँ बनी पुरानी इमारतों को तोड़ने और मलवा हटाने का खर्च शामिल नही है. स्मारक बनाने के लिए जिन जमीनों का इस्तेमाल किया गया, वह जनता के लिए आवासीय कालोनियों के लिए अधिग्रहीत की गयी थीं अथवा वहाँ पुराने सरकारी दफ्तर और जेलें वगैरह थीं.
इन्हें गिराने और दूसरी जगह नयी इमारतें बनाने में अलग से धनराशि खर्च की गयी, जो भी इस छह हजार करोड की धनराशि में शामिल नही है.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में कहा था कि इन स्मारकों पर लगभग चालीस हजार करोड रूपये खर्च हुए, लेकिन उन्होंने इसका कोई विवरण नही दिया.
स्मारकों में इस्तेमाल हुई साढ़े सात सौ एकड़ जमीन का सरकारी तौर पर कोई मूल्य नही बताया जा रहा है. लेकिन निर्माण क्षेत्र में लगे गैर सरकारी लोगों के अनुसार फिल्म सिटी के बगल बने नोएडा के पार्कों और लखनऊ में स्मारकों के लिए इस्तेमाल जमीनों की अनुमानित कीमत लगभग डेढ़ लाख करोड रूपये है.
स्मारकों के रखरखाव के लिए लगभग छह हजार कर्मचारी रखे गए हैं. स्मारक रख्ररखाव समिति के एक अधिकारी के अनुसार सालाना इनके वेतन का बजट 76 करोड रूपये है. वेतन के अलावा रखरखाव का सालाना खर्च पचास करोड रूपये है. इन स्मारकों में हर महीने औसतन 75 लाख यानि सालाना नौ करोड रूपये की बिजली जलायी जाती है.
प्राधिकरण अधिकारियों की चिंता है कि बिजली बिल कैसे कम किया जाए.
स्मारकों की सुरक्षा के लिए 850 कर्मचारी तैनात हैं. इनका वेतन गृह विभाग के बजट से अलग से आता है. इन पर भी हर महीने लाखों रूपये खर्च होते हैं.
पार्क पर खर्च
लखनऊ विकास प्राधिकरण अधिकारियों द्वारा हाल ही में तैयार किये एक विवरण के अनुसार सबसे अधिक एक सौ अठत्तर एकड़ जमीन डा. अम्बेडकर स्मारक और उसके आस- पास बने परिवर्तन स्थल तथा पार्कों पर खर्च की गयी.
ये स्मारक गोमती नदी के किनारे आलीशान पांच सितारा होटल और सबसे मंहगे विपुल खंड से सटे हैं, इसलिए इनकी जमीन सबसे कीमती हैं.
मायावती ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 1995 में यहाँ अम्बेडकर स्मारक, अम्बेडकर स्टेडियम , गेस्ट हाउस और पुस्तकालय आदि बनवाया था.
लेकिन 2007 में चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने इन इमारतों को डायनामाइट से तुडवाकर, स्मारकों का पुनर्निर्माण और विस्तार किया जिस पर अकेले आवास विभाग से 2111 करोड रूपये खर्च हुए.
शहर के पश्चिमी इलाके में वीआईपी रोड स्थित तीन जेलों को तोड़कर वहाँ की लगभग एक सौ पचासी एकड़ जमीन पर एक हजार पचहत्तर करोड रुपयों की लागत से कांशी राम ईको गार्डन बनायी गयी. बगल में लगभग 46 एकड़ जमीन पर कांशी राम स्मारक स्थल का पुनर्निर्माण कराया गया.
मोहनलाल गंज के पास बनी नयी जेल के लिए जमीन के अधिग्रहण और निर्माण का खर्च इसमें शामिल नही है.
वहीं बगल में सिंचाई विभाग की कालोनी और दफ्तर की इमारत तोड़कर 459 करोड रुपयों की लागत से बौद्ध विहार बनवाया गया.
थोड़ा और आगे चलकर एक सौ पैंसठ एकड़ जमीन पर 655 करोड रुपयों की लागत से रमा बाई स्मारक बनवाया गया.
नोएडा में लगभग पचहत्तर एकड़ में बने स्मारकों पर सात सौ पचास करोड रूपये खर्च किये गए.
महल
मायावती अपने गाँव बादलपुर में आलीशान महल बना रही हैं. इस महल की खूबसूरती के लिए ग्रेटर नोएडा अथारिटी ने लगभग 35 पैतींस एकड़ जमीन पर लगभग 140 करोड रुपयों की लागत से दो पार्क बनाए.
अपनी सफाई में मायावती कहती हैं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के बजट का मात्र एक फीसदी इन स्मारकों पर खर्च किया .
लेकिन इन्ही स्मारकों के बनाने में लगे कारीगरों और मजदूरों का कहना था कि इतनी जमीनों और पैसे से जनता के लिए उपयोगी अस्पताल अथवा शिक्षा संस्थाएं भी बनायी जा सकती थीं, पीने और सिंचाई के पानी का इंतजाम हो सकता था, बिजलीघर या दूसरे कल कारखाने लग सकते थे.
Published here- https://www.bbc.com/hindi/india/2012/05/120521_mayawati_memorial_vd