उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भारत के चुनाव आयोग ने आगामी विधान सभा चुनावों के लिए साइकिल का चुनाव चिह्न दे दिया है.
बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव ने इस पर वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी और अंबिकानंद सहाय का आकलन जाना है.
अंबिकानंद सहाय
चुनाव आयोग से साइकिल मिलना अखिलेश के लिए थोड़ा सांकेतिक ही है क्योंकि पार्टी का समर्थन तो इन्हीं के पास था.
इसमें कोई दो राय नहीं कि पार्टी के भीतर ज़्यादातर लोग ये मानते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी का चेहरा अखिलेश ही हैं.
ख़ास बात ये भी है कि अखिलेश पहले से इस बात के लिए भी तैयार थे कि अगर उन्हें साइकिल निशान नहीं मिला तो क्या होगा.
मिसाल के तौर पर उनके और उनके ख़ास सलाहकार चाचा रामगोपाल यादव के पास दूसरे चुनाव चिह्नों पर काम करने का प्लान तैयार था.
तकरीबन 90% समाजवादी पार्टी वैसे भी अखिलेश के साथ शिफ़्ट कर गई है.
अगर मुलायम को सिर्फ़ चुनाव चिह्न मिल भी जाता तो एक भाई और एक मित्र के अलावा उनके साथ समाजवादी पार्टी के लोग भी कहाँ दिख रहे थे.
जो पार्टी के भीतर दिखाई पड़ रहा था उस पर चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की भी मुहर लग चुकी है.
पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह को अब ये मान लेना चाहिए कि पार्टी उनके हाथ से ख़िसक चुकी है, इसलिए वे या तो वक़्त के साथ समझौता कर लें या फिर हाशिए पर आने का ख़तरा मोल लें.
रामदत्त त्रिपाठी
चुनाव आयोग ने तकनीकि कारणों पर ज़्यादा न जाकर इस बात पर ग़ौर किया है कि समाजवादी पार्टी के ज़्यादातर विधायक और सांसद अखिलेश यादव के समर्थन में खुल कर सामने आए थे.
आगामी चुनाव में इस फ़ैसले का लाभ अखिलेश यादव को हो सकता है और निश्चित तौर पर अब अखिलेश के लिए कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन को औपचारिक शक्ल देना आसान हो गया है.
जिस तरह से मुलायम ने सोमवार को पार्टी कार्यालय में जाकर अखिलेश के खिलाफ कुछ बयान दिए, उससे सुलह भी अभी करीब नहीं लग रही है.
खबरें रही हैं कि मुलायम सिंह यादव एक दूसरी पार्टी, लोक दल, से बातचीत करते रहे हैं कि उसके अपने चुनाव निशान (हल जोतता हुआ किसान) के साथ मिल कर चुनावी मैदान में कूदेंगे.
उधर चुनाव आयोग के सोमवार के फैसले के पहले से ही अखिलेश यादव गुट ने एक विदेशी प्रचार कंपनी के ज़रिए मतदान केंद्रों तक पूरी व्यवस्था कर रखी थी कि अगर फ़ैसला विपरीत गया तो एक नए निशान का प्रचार-प्रसार गाँव-गाँव तक करवा देंगे.
हालांकि अखिलेश यादव की पिछली पांच वर्ष की सरकार में जिस तरह से साइकिल का प्रचार किया गया ( लैपटॉप से लेकर स्कूल बैगों के वितरण के दौरान), उसे देखते हुए अखिलेश के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में एक नए निशान तक पहुंचा पाना उतना आसान भी नहीं रहता.
https://www.bbc.com/hindi/india-38636412