ताज कॉरिडोर मामले में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर मुकदमा न चलाने का हाईकोर्ट का फैसला ऐसे समय पर आया है जबकि संसद का शीतकालीन अधिवेशन जल्दी ही शुरू होने वाला है.
प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को इस अधिवेशन में अपनी सरकार का बहुमत बनाए रखने और विधेयक पास कराने के लिए बहुजन समाज पार्टी का समर्थन चाहिए.
इसलिए लोग अदालत के इस फैसले को राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं.
इससे पहले सन 2007 में जब राज्यपाल ने सीबीआई को मायावती पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, उस समय कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रपति चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का समर्थन चाहिए था. इसलिए तब भी इसे मायावती पर केंद्र सरकार या सोनिया गांधी की मेहरबानी मानी गई थी.
इस पृष्ठभूमि में लोगों को मायावती के वकील सतीश चंद्र मिश्र की यह बात गले नही उतर रही है कि हाईकोर्ट ने मेरिट यानी मामले के गुणदोष के आधार पर फैसला सुनाया है.
मुद्दा
वैसे भी यह बात इसलिए सही नही है क्योंकि हाईकोर्ट में यह मुद्दा था ही नहीं कि सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की थी उसको साबित करने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं या नहीं.
वह स्थिति तो तब आती जब ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चलता और मायावती अदालत में अपने को निर्दोष साबित करतीं.
इस मुक़दमे का एक और पहलू यह भी है कि ताज कॉरिडोर में निर्माण में कथित भ्रष्टाचार की जांच किसी सरकार ने नहीं शुरू की थी.
आगरा में ताजमहल के इर्दगिर्द पर्यावरण की निगरानी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्वतः इस मामले का संज्ञान लिया. सीबीआई को जांच का आदेश दिया. फिर आपराधिक मुकदमा कायम हुआ.
अदालत ने जब यह आदेश दिया था उस समय केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में मायावती बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार चला रही थीं.
जांच
इसी जांच के दौरान पता चला कि ताज कॉरिडोर निर्माण के लिए जो ठेका दिया गया और सरकारी पैसा दिया गया उसमें भ्रष्टाचार हुआ.
जांच एजेंसी को इस बात के भी सबूत मिले कि मायावती ने सत्ता में रहते हुए और भी संपत्ति हासिल की.
इसलिए सीबीआई ने आय से अधिक सम्पत्ति का एक और मुकदमा कायम किया.
सुप्रीम कोर्ट बराबर पूरी जांच की निगरानी करती रही. सीबीकोर्ट को रिपोर्ट देती रही कि उसने मायावती के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए तमाम सबूत एकत्र कर चार्जशीट तैयार कर ली है.
क्या कहना है कानून
कानून कहता है कि सीबीआई या पुलिस को आपराधिक मामले की जांच पूरी होने के बाद अपनी फाइनल रिपोर्ट या चार्जशीट ट्रायल कोर्ट में दाखिल करनी चाहिए.
लेकिन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मामला समाप्त कर दिया कि उसने मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा दायर करने का कोई आदेश ही नही दिया था. वैसे कानून में इस आदेश की आवश्यकता भी नही थी.
अब लखनऊ हाईकोर्ट ने कह दिया है कि ताज कॉरिडोर मामले में मायावती पर सिर्फ इसलिए मुकदमा नही चल सकता क्योंकि नियुक्ति अधिकारी यानी राज्यपाल ने मुकदमा चलाने की अनुमति सीबीआई को नही दी है.
हालाकि हाईकोर्ट के सामने कोर्ट के ही फैसलों की यह नजीर थी कि भ्रष्टाचार अथवा अन्य अपराध किसी लोक सेवक का सरकारी दायित्व नही है. इसलिए उसके लिए उन पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम अधिकारी यानी नियुक्ति अधिकारी से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नही है.
फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील
मायावती पर मुकदमा चलाने के लिए जनहित याचिका दाखिल करने वालों के वकील ओर पूर्व जज चंद्र भूषण पाण्डेय का कहना है कि हाईकोर्ट के इस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर होगी.
इस तरह हाईकोर्ट के इस फैसले से भी मायावती को ताज कोरिडोर मामले से मुक्ति नही मिली है.
सुप्रीम कोर्ट को ही यह साफ़ करना होगा कि क्या देश की शीर्ष अदालत ने बेवजह चार साल तक इस मामले की मॉनिटरिंग की और मायावती को परेशान किया.
और फिर अगर सीबीआई ने उसके आदेश पर जांच करके चार्जशीट तैयार की तो फिर ट्रायल कोर्ट में मुकदमा क्यों नही चलना चाहिए.
ट्रायल कोर्ट ही वह मंच है जहां मायावती साबित कर सकती हैं कि सीबीआई की चार्जशीट निराधार है.
https://www.bbc.com/hindi/india/2012/11/121106_mayawati_order_analysis_ac