उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने क़रीब एक हफ्ता ही हुआ है, लेकिन उनके कामकाज के तरीक़ों को लेकर संदेह और अपेक्षाएं जारी हैं.
लेकिन सबसे पहले ये जानना ज़रूरी है कि उत्तर प्रदेश में ज़मीनी हक़ीक़त क्या है?
2019 का दबाव
बीजेपी को जो प्रचंड बहुमत मिला है उससे ये साफ है कि मुख्यमंत्री योगी से लोगों को काफी अपेक्षाएं हैं. वो जानते हैं कि 2019 में अभी फिर जनता के बीच में जाना होगा.
अखिलेश यादव 2012 में बहुमत से आए थे लेकिन जैसे ही 2014 का लोकसभा चुनाव हुआ तो उन्हें सिर्फ पांच सीटें मिलीं.
इसीलिए उन पर जनमत की वजह से और समय की वजह से भी काम को करके दिखाने का एक प्रेशर है.”
सरकारी कर्मचारियों के प्रति नई सरकार का सख़्त रवैया नज़र आया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक तरह से सरकारी कर्मचारियों को चेतावनी दी है कि वो ठीक से काम करें और शायद ये चेतवानी कर्मचारियों से ज़्यादा उनके अपने मंत्रिमंडल के लिए भी है.
जहां तक सरकारी कर्मचारियों का सवाल है, तो 8-10 घंटे काम कर लें तो वही बहुत है.
प्रशासनिक चुनौतियां
उत्तर प्रदेश में प्रशासन की ज़मीनी स्थिती में दो समस्याएं अहम हैं.
पहली बात ये कि ज़्यादातर ट्रांसफर और पोस्टिंग में स्थानीय विधायक या सांसदों की सिफ़ारिश से लोग जाते हैं. उन पर पक्षपात और रिश्वतख़ोरी के आरोप लगे हैं. उनको डर नहीं होता और वो ठीक से काम नहीं करते.
दूसरी समस्या ये है कि स्टाफ की बहुत कमी है, सालोंसाल से भर्ती नहीं हो रही है और स्टाफ कम है. एक एक पंचायत सचिव के पास 6 से 7 ग्राम सभाओं का चार्ज है. एक एक बीडीओ के पास तीन तीन ब्लॉक का चार्ज है. तहसीलदार नहीं हैं, तो इनकी वजह से बहुत सारी विकास योजनाओं का पैसा ख़र्च नहीं होता या स्कीम ठीक से लागू नहीं होती या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है.
मुख्यमंत्री योगी को ये भी देखना होगा कि सिर्फ डांटने फटकारने से काम नहीं चलता, आज विभागों में टीचर्स के लाखों पद ख़ाली पड़े हैं- ब्लॉक में, तहसील में. पुलिस विभाग में भी एक लाख पद ख़ाली पड़े हैं, तो इनकी भर्ती पर भी ध्यान देना होगा.
गुंडाराज ख़त्म करने के प्रयास
लोग चाहते हैं कि सरकार गुंडो बदमाशों के साथ सख़्ती से पेश आया जाए और योगी ने इस बारे में अपने भाषण कुछ बातें ही भी हैं.
लेकिन समस्या ये है कि योगी जी को ख़स्ताहाल हो चुकी आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया पर ध्यान देना होगा.
जब तक पुराने बदमाशों को सज़ा नहीं मिलेंगी, इस वर्ग में डर पैदा नहीं होगा और संदेश नहीं पहुँचेगा.
बूचड़खानों की राजनीतिक हक़ीक़त
उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों पर हो रही सख़्ती मीडिया में एक बड़ा मुद्दा है.
दरअसल भाजपा के नेताओं ने चुनाव में ये कहा था कि जो अवैध बूचड़खाने हैं वो बंद किए जाएंगे.
लेकिन पुलिस ने अति-उत्साह में आकर ना केवल अवैध बूचड़खाने बल्कि मीट की दुकानें भी बंद करवा दीं.
कई जगह तो बजरंग दल या बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने दुकानें तोड़फोड़ दीं, जला दी हैं और इसकी वजह से हड़ताल हो गई है.
नतीजा ये हुआ कि लोगों को मीट नहीं मिल रहा, ख़ासतौर से भैंसे का गोश्त नहीं मिल रहा है जिसके चलते लखनऊ का मशहूर गलावटी कबाब बाज़ार से गायब हो गया है.
कई लोगों को आशंका है और आरोप लगा रहै हैं कि ये काम कई बड़ी कंपनियां है जो मांस की सप्लाई करती हैं और क्या ये कार्रवाई उनके दबाव या इशारे पर हो रही है?
(बीबीसी संवादाता संदीप सोनी ने वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी से बातचीत पर आधारित)